योगेश्वर श्रीकृष्ण कैसे धनवंतरी स्वरूप में रोगों से रक्षा करते हैं जानें सहजयोग से
श्रीकृष्ण को "योगेश्वर" और धनवंतरी को "भगवान" के रूप में जाना जाता है, लेकिन दोनों का महत्व अलग-अलग है। श्रीकृष्ण को योगेश्वर कहा जाता है क्योंकि उन्होंने योग के मार्ग को दिखाया और श्रीमद्भगवद्गीता में अर्जुन को योग का ज्ञान दिया जो संपूर्ण विश्व के लिए वरदान है। श्रीकृष्ण को योग का ज्ञाता माना जाता है, खासकर कर्म योग, ज्ञान योग और भक्ति योग में।
सहज योग ज्ञान योग है। ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग सहज योग माध्यम से आसानी से प्राप्त होता है। हमारे विशुद्धि चक्र पर योगेश्वर श्री कृष्ण का स्थान है। इस चक्र पर ध्यान से मानव में निर्दोष भाव आता है फलस्वरूप वह पूर्ण साक्षी अवस्था को प्राप्त करता है। साक्षी वह अवस्था है जिसे प्राप्त करते ही मनुष्य प्रतिक्रिया नहीं करता है। महाभारत के युद्ध में अर्जुन परिजनों को अपने समीप देखकर शस्त्र उठाने से इंकार करते हैं जिससे श्री कृष्ण ने अर्जुन को उनके कर्तव्य, धर्म, कर्म, ज्ञान, योग, और जीवन-मृत्यु के चक्र के बारे में समझाया और साक्षी अवस्था में अर्जुन ने युद्ध किया।
श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कर्म योग का ज्ञान दिया, जिसमें कर्मों के फल की इच्छा किए बिना अपने कर्तव्यों का पालन करना शामिल है। सहज योग साधक को साक्षी भाव के साथ कर्मयोग के लिए दिशा देता है। नियमित ध्यान से अपनी इच्छाओं पर विजय पाता है और अपने आपको परमात्मा के इच्छाओं के अनुरूप ढालने में समर्थ होता है।
ऐसे ही भगवान धन्वंतरि, हिंदू धर्म में, देवताओं के चिकित्सक और आयुर्वेद के देवता माने जाते हैं। उन्हें भगवान विष्णु यानि श्री कृष्ण का ही अवतार माना जाता है। जब वे समुद्र मंथन के दौरान प्रकट हुए तब उनके हाथों में अमृत का कलश था। धनवंतरी स्वरूप में श्री कृष्ण चिकित्सकों के भी चिकित्सक हैं। श्री कृष्ण विशुद्धि चक्र जो गले में स्थित है के स्वामी हैं। गला यानि गर्दन हमारे पूरे सिर को सम्भालता है यानि पूरा मस्तिष्क ही श्री कृष्ण का क्षेत्र है। सहज योग ज्ञान से साधक को अपनी हथेली पर अपने या अन्य किसी चक्रों की स्थिति का आभास होता है, जिससे अपने या अन्य के शारीरिक व्याधि का पता चलता है। यह ज्ञान उसे मस्तिष्क से ही मिलता है। श्री माताजी के असीम कृपा से जब कुंडलिनी शक्ति जागृत होती है तब हाथों से प्रवाहित होने वाली चैतन्य लहरियाॅं मस्तिष्क से यह संदेश हमारे हथेली पर प्रवाहित करती हैं। यह एक कम्प्यूटर सम कार्य करता है और साधक यह जान लेता है उसे स्वयं या अन्य किसी को क्या कष्ट है। यहाँ विराट के मस्तिष्क में श्री कृष्ण का सिद्धांत कार्य करता है। इस प्रकार श्री कृष्ण धनवंतरी के रुप में चैतन्य लहरियों के माध्यम से रोग निवारण में हमारी सहायता करते हैं। योगेश्वर श्री कृष्ण आकाश के देवता हैं। उनके जन्म के समय उनकी बहन ने आकाशीय विद्युत से उद्घोषित किया था कि कंस को मारने वाले भगवान अवतरित हो चुके हैं। इसी प्रकार अपनी माता यशोदा को भी उन्होंने अपने मुंह में पूरा ब्रम्हांड दिखा दिया था। श्री कृष्ण की 16000 पत्नियाँ दरअसल उनके सोलह गुण हैं। विशुद्धि चक्र की भी 16 पंखुडियाॅं है। जो श्री कृष्ण के 16 गुण है। विशुद्धि चक्र पर ध्यान कर साधक इन गुणों को अपने अंदर स्थापित करने में सक्षम हो जाता है। श्री कृष्ण के गुणों को आत्मसात करने व आत्म साक्षात्कार प्राप्त करने हेतु अपने नज़दीकी सहजयोग ध्यान केंद्र की जानकारी टोल फ्री नंबर 1800 2700 800 से प्राप्त कर सकते हैं।