संतुलित आज्ञा चक्र से ही कुंडलिनी जागरण संभव है

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छठा चक्र आज्ञा चक्र कहलाता है।  इसकी केवल दो पंखुड़ियाँ होती हैं। .. इस केन्द्र को वहाँ स्थित किया गया है जहाँ मस्तिष्क में दोनों दृकतंत्रिकायें एक दूसरे को पार करती हैं। यह केन्द्र पियुष (पिट्यूटरी) तथा शंकुरूप (पीनियल) ग्रन्थियों के लिये कार्य करता है जो कि अहं एवं प्रति अहं नामक दोनो संस्थाओं का प्रतिनिधित्व करता है।
         आज्ञा चक्र का महत्वपूर्ण क्षेत्र सिर के पिछले भाग का वह स्थल है जो माथे के ठीक पीछे स्थित है। ये उस क्षेत्र में स्थित है जो गर्दन के आधार से आठ उंगलियों की ऊँचाई पर स्थित है। यह महागणेश का क्षेत्र है।
आज्ञा चक्र के खराब होने का मुख्य कारण आँखें हैं।.. किसी भी स्त्री की तरफ बुरी दृष्टि से देखना महापाप है। .. गलत नज़र रखने से मनुष्य किसी पशु के समान बर्ताव करता है। क्योंकि रात दिन उसके अन्दर गन्दे विचारों का चक्र चलता रहता है।  आपकी नज़र भी व्यभिचारी नहीं होनी चाहिये। अगर नज़र अपवित्र होगी तो आपको आँखों की तकलीफ भी हो जाएगी। ......... अपनी आँखे इधर-उधर घुमाने के कारण ये खराब होती हैं।
आज्ञा चक्र खराब होने का दूसरा कारण है मनुष्य की 'कार्य पद्धति', समझ लीजिये आप बहुत काम करते हैं, अति कर्मी हैं, अच्छे काम करते हैं, कोई भी बुरा काम नहीं करते परन्तु ऐसी अतिकार्यशीलता की वज़ह से चाहे वह अति पढ़ना हो, अति सिलाई हो या अति विचारशीलता, आपका आज्ञा चक्र प्रभावित होता है, इसका कारण है कि जिस समय आप अति कार्य करते हैं उस समय परमात्मा को भूल जाते हैं, उस समय आपमें ईश्वर प्रणिधान स्थित नहीं होता।
अनाधिकृत गुरु के सामने झुकने अथवा उनके चरणों में अपना माथा टेकने से भी आज्ञा चक्र खराब हो जाता है।  (प.पू.श्री माताजी, २७.९.१९७९)
हमारे सभी विचारों और बन्धनों में से अहं कि 'मैं यह कार्य कर रहा हूँ' सबसे बुरा है, इसका समाप्त होना आवश्यक है..... जब तक आप स्वयं को कर्ता समझते रहेंगे आप आनन्द के सागर में छलांग नहीं लगा सकते।
(प.पू.श्री माताजी, इटली, १९.४.१९९२)
जब हम अहं को बढ़ावा देने लगते हैं तो दाईं ओर की समस्यायें आरम्भ हो जाती हैं, तब प्रतिक्रिया के रूप में इसका प्रभाव बाईं ओर पर पड़ता है। वास्तव में बाईं ओर का स्थान हमारे सिर में दाईं तरफ है तो हमारा अहं दाईं आज्ञा में आ जाता है। श्री महावीर बाईं ओर के रुद्र हैं। अहंवश होकर लोग पापमय अनुचित कार्य करते हैं जो श्री गणेश के विरूद्ध हैं। (प.पू.श्री माताजी, दिल्ली, १६.३.१९९७)
बाईं आज्ञा (पीछे की ओर) की यदि समस्या होतो इसका कुप्रभाव आँखो पर पड़ता है, हमारी आँखों का आकार बढ़ सकता है तथा दूर दृष्टि कम हो सकती है। मानसिक रोगियों को बाईं आज्ञा की समस्या बहुत अधिक होती है। व्यक्ति को गुरुओं और पुस्तकों के विषय में बहुत सावधान रहना चाहिये क्योंकि इनके कारण बाईं आज्ञा तथा स्वाधिष्ठान की समस्या हो सकती है।
बाईं आज्ञा चक्र यदि प्रकाशित हो जाए तो व्यक्ति अपनी लौकिक आँखो से चैतन्य देखने लगता है। यह बाईं आज्ञा अत्यन्त अन्तर्भेदी है। सामने का दायां आज्ञा चक्र भी बहुत महत्वपूर्ण है। हम यदि क्षमा नहीं करते तो यह खराब हो जाता है। यदि बहुत अधिक सोचते हैं तो भी यह समस्यायें खड़ी करता है। ....... बहुत अधिक सोचने पर हमारे चेतन मस्तिष्क पर आक्रमण कर देता है।  भविष्यवादी दृष्टिकोण व्यक्ति की आज्ञा को खराब कर देता है। आप यदि अहंवादी हैं तो आप चक्र के  मार्ग को बहुत ही संकीर्ण कर देते हैं। ......आप यदि प्रतिअहंवादी, डरे हुये, किसी से दबे हुये व्यक्ति हैं तब भी यह चक्र बहुत अधिक विकृत हो जाता है। संतुलन स्थापित होने पर यह आज्ञा चक्र बेहतर हो जाता है केवल तभी उठती हुई कुण्डलिनी इस चक्र को पार कर पाती है। सहजयोग की अधिक जानकारी निम्न साधनों से भी प्राप्त कर सकते हैं। यह पूर्णतया निशुल्क है। टोल फ्री नं – 1800 2700 800 अथवा यूट्यूब चैनल लर्निंग सहजयोगा

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