ज़िंदगी कितनी अनिश्चित होती है...

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ज़िंदगी कितनी अनिश्चित होती है...

आप छुट्टियों पर सुकून ढूँढ़ने जाते हैं, और आतंकवादियों की गोली का शिकार हो जाते हैं।
आप किसी टीम की जीत का जश्न मनाने जाते हैं, और भीड़ की भगदड़ में कुचले जाते हैं।
आप रोज़ की तरह ऑफिस जा रहे होते हैं, और एक हादसा आपकी साँसें छीन लेता है।
आप किसी काम या छुट्टी के लिए फ्लाइट पकड़ते हैं, और वह आसमान में ही टूट जाती है।
आप अपने हॉस्टल में पढ़ाई कर रहे होते हैं, सपने बुन रहे होते हैं… और अचानक एक प्लेन आप पर गिर पड़ता है।
मौत का कोई पता नहीं…
ना वह बताकर आती है, ना किसी को छूट देती है।
कब, कहाँ, और कैसे — कोई नहीं जानता।
इस त्रासदी को देखिए —
लोग जो प्लेन में थे न वो दोषी थे,
न वो डॉक्टर जो हॉस्टल में थे…
फिर भी, सब चले गए…
एक पल में सब कुछ खत्म।
बस एक पल का फासला होता है,
और ज़िंदगी का वो नाज़ुक धागा हमेशा के लिए टूट जाता है।
ऐसे हादसे हमें झकझोरते हैं...
हमें यह एहसास दिलाते हैं कि हम कितने असहाय हैं इस जीवन के सामने।
हर दिन, हर पल एक वरदान है, एक अवसर है…
क्योंकि शायद अगला पल आए या न आए…
इसलिए जी भर के जिएं
अपने अपनों से दिल खोलकर मिलें
माफ करें, गले लगाएं,
और दूसरों के लिए थोड़ा अच्छा कर जाएं।
क्योंकि क्या पता,
कल हो न हो…

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