मनुष्य सृष्टि का शिखर है तथा आत्मबोध सृष्टि के आनंद का आधार
परमपिता परमात्मा को हम सत-चित-आनंद कहते हैं। सत् माने सत्य। सत् पुरुष वह ईश्वर है जो स्वयं सृष्टि में वास्तविक भाग नहीं लेता है, बल्कि उत्प्रेरक है। उदाहरणार्थ मैं सब काम कर रहा हूं, लेकिन प्रकाश के बिना मैं कुछ नहीं कर सकता। प्रकाश मेरे कार्य का आधार है, लेकिन प्रकाश किसी भी तरह से मेरे द्वारा किए जाने वाले कार्यों के बारे में कुछ नहीं करता है। इसी प्रकार सर्वशक्तिमान ईश्वर प्रकाश के समान साक्षी मात्र हैं।
उनका एक अन्य गुण चित है। यह ध्यान है। जब यह स्पंदित होता है, तब वह अपने ध्यान से रचना करना शुरू कर देते हैं। और उनका एक तीसरा गुण है जिसे हम आनंद कहते हैं। आनंद, अनुभूति है जो उन्हें अपनी धारणा से, अपनी रचना से मिलती है। ये तीनों चीजें - सत्-चित-आनंद - जब ये एक शून्य बिंदु पर होती हैं जहां ये मिलती हैं, तब ये ब्रह्म का सिद्धांत बन जाती हैं।
आनंद जब सृष्टि के साथ चलने लगता है, तो सृष्टि शुरू होती है, पहले सत् या सत्य अवस्था से असत् अर्थात् माया से नीचे उतरती है। और उस समय, सृष्टि काम करना शुरू कर देती है और जब यह काम करना शुरू कर देती है, तो भगवान का भावनात्मक पक्ष भी स्थूल और स्थूल होने लगता है। व भौतिक संसार का निर्माण होता है।
अब इस प्रक्रिया का एक और हिस्सा तब शुरू होता है जब आप सर्वशक्तिमान ईश्वर को वापस प्राप्त कर रहे होते हैं। धीरे-धीरे स्थूल भाग प्रबुद्ध होने लगते हैं। तो आनंद भी अपनी अभिव्यक्ति को बदलना शुरू कर देता है, और आनंद की व्यापक सीमा आपके हाथ में आ जाती है। अब आप देखते हैं कि कैसे ईश्वर की रचनात्मकता मनुष्य के हाथों में जाती है, कैसे ईश्वर का आनंद मनुष्य के हाथों में जाता है, और कैसे उसका प्रकाश मनुष्य के हृदय में आत्मा के रूप में आता है। उस प्रकाश के कारण हम धर्म की बात करते हैं, हम ईश्वर की बात करते हैं और हम शाश्वत चीजों की बात करते हैं। लेकिन यह आनंद तब तक नहीं हो सकता जब तक कि जागरूकता उस अवस्था तक नहीं पहुंच जाती जहां आप स्वतंत्र हो जाते हैं। स्वतंत्र अर्थात् स्व के तंत्र को समझना, सूक्ष्म व स्थूल शरीर की आपके उत्थान में भूमिका को समझना।
मनुष्य सृष्टि का शिखर है। मनुष्य के रूप में हर चीज में आनंद है। लेकिन आत्मबोध के बाद ही आप सृजन के वास्तविक आनंद को महसूस कर सकते हैं।
इस अवस्था को प्राप्त करने का सहजयोग एक सरल व प्रमाणिक माध्यम है। कुंडलिनी जागरण द्वारा आत्मसाक्षात्कार की प्राप्ति के पश्चात् साधक सत्-चित-आनंद को सहज ही प्राप्त कर लेते हैं तथा नियमित ध्यान धारणा द्वारा हम उत्थान के उच्चतम शिखर पर भी सहज ही पहुंच जाते हैं।
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