गुड़ी पाडवा से रामनवमी तक सहज योग में ध्यान धारणा
हिंदू धर्म में गुड़ी पड़वा का पर्व अत्यंत महत्वपूर्ण है। महाराष्ट्र में गुड़ी पाड़वा को बहुत खुशी और उत्साह के साथ मनाया जाता है, इसी दिन से चैत्र नवरात्र की शुरुआत होती है व इसी को नववर्ष का आरंभ माना जाता है। गुड़ी पाड़वा को आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक में उगादी के नाम से जानते हैं। इस त्योहार कश्मीर में नवरेह नाम से प्रसिद्ध है। मणिपुर में गुड़ी पड़वा को साजिबू नोंगमा पानबा के रूप में मनाया जाता है।गुढ़ी पाड़वा के दिन भगवान ब्रह्मा की पूजा की जाती है, जिनके बारे में माना जाता है कि उन्होंने इस दिन ब्रह्मांड का निर्माण कार्य शुरु किया था। इस दिन से हिंदू नववर्ष की शुरुआत होती है। गुड़ी पाडवा त्योहार महाराष्ट्र में विशेष उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है। गुड़ी पड़वा के अवसर पर घरों में गुड़ी (विजय पताका चिंह) स्थापित की जाती है, जो समृद्धि का प्रतीक मानी जाती है।
इसी दिन मराठा साम्राज्य के महान संस्थापक शिवाजी महाराज ने भी अपनी जीत की याद में तथा अपने साम्राज्य के लोगों के बीच शांति, एकता और समृद्धि को बढ़ावा देने के लिए गुड़ी पड़वा को मनाया था।
सहज योग में नवरात्रि बहुत महत्वपूर्ण है। आदिशक्ति ने ही नवरात्र में साधकों के लिये संसार की बाधाओं का अंत किया। सहज योगी अपनी नियमित ध्यान के साथ चक्रों पर आसीन मां की अलग अलग छवि का ध्यान, प्रार्थना और आराधना करते हैं, परमपूज्य श्री माताजी निर्मला देवी प्रणीत सहज योग चक्रों पर नियमित ध्यान धारणा है और नवरात्र देवी के स्वरूप के क्रम के अनुसार ही सुक्ष्म शरीर में चक्रों का भी स्थान है।
- प्रथम दिन माँ शैलपुत्री के रुप में हम मूलाधार चक्र पर ध्यान करते हैं। माँ शैलपुत्री का जन्म हिमालय पर्वत पर होने के कारण ही उनका नाम शैलपुत्री पड़ा। इस दिन साधक प्रार्थना में माँ से अबोधिता व सत सत विवेक बुद्धि मांगते हैं, जो मूलाधार चक्र का गुण है।
- दूसरा स्वधिष्ठान चक्र है और माँ के दूसरे रुप ब्रम्हचारिणी का स्थान भी इसी चक्र पर है। इस दिन हम शुद्ध विद्या व कलात्मकता के लिए ध्यान करते हैं क्योंकि यही स्वधिष्ठान चक्र का गुण है। मां ब्रम्हचारिणी विद्या व कला की देवी हैं।
- माँ का तिसरा रुप मां चंद्रघंटा का है व स्थान है मणीपुर या नाभी। इस चक्र पर ध्यान कर साधक संतोषी व धार्मिक बनता है क्योंकि यही नाभी चक्र का गुण है।
- चौथे दिन कूष्माण्डा देवी के स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन 'अनाहत या हृदय' चक्र में अवस्थित होता है। यहाँ ध्यान कर साधक निर्भय व आत्मविश्वासी बनता है।
- पांचवे दिन की माँ स्कंदमाता विशुद्धि चक्र की अधिष्ठात्री देवी हैं। विशुद्धि चक्र हमारे गले के उभरे हुए भाग के ठीक नीचे स्थित होता है। मां स्कंदमाता की उपासना से उपासक साक्षी भाव प्राप्त करता है व उसकी वाणी मधुर हो जाती हैं।
- मां कात्यायनी, देवी दुर्गा के छठे स्वरूप हैं, और नवरात्रि के छठे दिन उनकी पूजा की जाती है। इस दिन साधक का मन 'आज्ञा चक्र' में स्थित होता है। योग साधना में, आज्ञा चक्र को महत्वपूर्ण माना जाता है, जो दोनों आँखों के बीच, माथे के केंद्र में स्थित होता है। क्षमाशीलता इस चक्र का गुण है।
- मां कालरात्रि नवरात्रि के सातवें दिन पूजी जाती हैं व सहस्रार चक्र में विराजमान हैं। यहाँ का ध्यान साधक के मन को शुद्ध चेतना से भर देता है और ब्रह्माण्ड की समस्त सिद्धियों का द्वार खोलता है। सहस्त्रार चक्र हमारे सिर के उपर तालु भाग में स्थित है।
- महागौरी देवी का अष्टमी के दिन पूजन का विधान है। सहज योग में हम सहस्त्रार के उपर विराजमान मां गौरी की आराधना करते हैं। इनके ध्यान से पूजन करने से समस्त सुख की प्राप्ति व दुखों का क्षय होता है व ईश्वरीय साम्राज्य का सुख मिलता है।
- नौवें दिन देवी सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है जो अपने नाम के अनुरुप, सिद्धि देने वाली हैं, सभी चक्रों के संतुलित होने के उपरांत साधक में हर गुण प्रस्थापित होते हैं यानि साधक सर्वगुणसम्पन्न हो जाता है। देवी पुराण कहता है भगवान शिव ने देवी के इसी स्वरूप से कई सिद्धियां प्राप्त की।
हम मानवों को ईश्वरीय अनुभूति देने के लिए ही हमारी परमपूज्य श्री माताजी ने सहज योग की स्थापना की है। नवरात्रि के पावन अवसर पर सहज योग को गहनता से समझने,जुड़ने और आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने हेतु अपने नज़दीकी सहजयोग ध्यान केंद्र की जानकारी टोल फ्री नंबर 1800 2700 800 से प्राप्त कर सकते हैं या वेबसाइट www.sahajayoga.org.in पर देख सकते हैं। सहज योग पूर्णतया निशुल्क है।