नवरात्री-जगदंबा शक्ती के जागरण का उत्सव!

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संमूमिल संवित्कमल मकरंदैक रसिकं।
भजे हसद्वद्वं महतां मानसचरणं ।
यदालापादष्ट्या दशगुणित विद्या परिणत:।
यदादत्ते गुणंमाखिल अद्भवपय इव य:।


"सौंदर्यलहरी"


‘या देवी सर्व भूतेषु शक्तीरूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: 'प्राचिन काल से हमारा भारत देश शक्ती का पूजरी रहा है ! अनेक ऋषी मुनी और साधु संतो ने शक्ती का वर्णन ‘पदय’मे, भजन और अपने गीतो मे किया है । परमपूज्य श्री माताजी प्रणित सहजयोग भी शक्ती पूजक है और शक्ती के जागरण की ही बात करता है । परमपूज्य श्री माताजी अपनी अमृतवाणी में कहते है, अपने अंदर अगणित शक्तीयॉं सुप्तावस्था में है, और इन शक्तीयो को जगाया जा सकता है । शक्ती का जागरण एक जिवंत प्रक्रिया है, और अपनी शुद्ध इच्छाशक्ती जाग्रत होनेपर यह क्रिया अपने अंदर अनायास ही तभी घटीत होती है, जब हमारे हृदय में इस शक्ती के प्रति संपूर्ण  श्रध्दा, विश्वास, भक्ती और समर्पण भाव उमडता है । समर्थ रामदास स्वामी महाराज कहते है, अगर आप सच्चे सद्गुरू के सामने अपने दोनो हाथ फैलाकर बैठेंगे तो तत्क्षण यह शक्ती जाग्रत होती है, और इस शक्ती को जाग्रत करने बाद आप मे (अल्पाधारिष्ठ्य पाहिजे) धीरज और धैर्य की आवश्यकता होती है ।
विश्व के हम सभी सहजयोगी आपसे नम्र निवेदन करते है की अगर इस नवरात्री में आपको ,आपके अंदरस्थित इस शक्ती को जगाना है, तो संपूर्ण विनम्रता और सश्रद्ध अंत:करण से परमपूज्य श्री माताजी "श्री आदिशक्ती "की प्रतिमा के सामने बैठिये और एक प्रश्‍न पूछिये, श्री माताजी क्या आप ही ‘श्री जगदंबा’ है, क्या आप ही श्री दुर्गा हो? अपना दाहिना हाथ आपने हृदय पर  रखकर प्रार्थना किजीये, हे आदिशक्ती भगवती मॉं, मुझे मेरा आत्मसाक्षात्कार दिजीये, मेरे मूलाधार स्थित शक्ती का जागरण कर दिजीये, मुझे पर कृपा करे, दया, करे, मुझे परमचैतन्य प्रदान करे ! बस इतनी प्रार्थना आप हृदय से करीये, तत्क्षण आपके हृदय में, आपके दोनो हाथो से और आपके तालुभाग पर आपको इस शक्ती की अनुभूती होगी और आप हृदय से कहेंगे ‘थँक्यू’, विनम्रता का यह भाव अनायास ही आपके हृदय से उमड पडेगा !
परमपूज्य श्री माताजी कहते है, जब आप आत्मसाक्षात्कार से आशीवार्दित होते है तो अनेक शक्तीयॉं आपमे जाग्रत होती है, जैसे की कोई सुंदर वादय बजाते है, कोई गायक, तो कोई लेखक, इतना ही नही जीवन के हर क्षेत्र में आप उन्नत होते है । परंतु इस शक्ती पथ पर चलनेवाले साधक को सदैव सतर्क रहना होगा । यह शक्तीयॉं प्रदान करनेवाली देवी "महामाया "है। अगर आप अपने को प्राप्त आशीर्वादो मे उलझ गये तो यह शक्ती कम हो जाती है, इसलिये साधक को चाहिये की वह सदैव विनम्र रहे और कहे की  श्री माताजी आपही कर्ता और आप ही भोक्ता हो, मै तो निमित्त मात्र हुँ । कृपावंत होकर आप मुझे आपका एक सुंदर माध्यम बना निजीये, शक्ती वाहक बना दिजीये ताकि आपका यह प्रेम का संदेश मैं हर दिल तक पहॅूंचा सकू । इस शक्ती को प्राप्त साधक कैसा होता है, इसकी व्याख्या करते हुए श्री माताजी कहते है, वह भौतिकता और खान पान से उपर उठता है । वह खाने पीने के मामले में बहोत .अडियल..... नही होता और कहीं भी रह सकता है । बाह्य का विपरीत भौतिक वातावरण उसके आत्मानंद को नही हिला सकता। वह साधक अपने आत्मसाक्षात्कार और आत्मान्नती को प्राथमिकता देता है, तब वह रसपूर्ण बनता है, मधुकर बनता है, वह अल्हाददायीनी शक्ती उसका पालन पोषण करती है, उसका ‘योग’ और ‘क्षेम’पालती है, अर्थात उसकी योग साधना में आनेवाली सभी बाधाओं का निवारण करती है । सहजयोग में साधक जब हर दिन ध्यान करता है, अपनी चक्र और नाडीयो का शुद्धीकरण करता है, तो उसे यह पता चल जाता है, की मेरे कौनसे चक्र में ‘खराबी’ या ’नकारात्मकता’ आ गयी है और साधक, जिसका चित्त अभी आत्मा के प्रकाश से आलोकित हो गया है वह उस चक्र की ओर जब साक्षीभाव से देखता है, १०-१५ मिनिट तक, या तब-तक,जब-तक उस चक्रसे शीतल चैतन्य लहरीयॉं प्रवाहित न हो रही हो। और धीरे धीरे वह साधक उस चक्र में मधुर शीतल चैतन्य लहरीयों का रसास्वादन करने लगता है, श्री माताजी कहते है इस प्रकार आपको इस शक्ती के गौरव में उतरना होगा, उँचा उठना होगा तभी आप यह प्रेम दुसरो को बॉंट सकेंगे ! सभी में वह ‘आनंद बिहारी’ जगाने के लिये माध्यम बने सकेंगे, सौंदर्य लहरी ग्रंथ में श्री आद्य शंकराचार्य कहते है, हे भगवती मॉं, जब मैं आपके चरण कमलो का पूजन अपने हृदय के संवितकमळ में करता हूँ तब एक मकरंद रस का झरना मेरे हृदय देशसे निकलकर मेरे संपूर्ण मन:पटल छा जाता है । वह मधुर सुखद अनुभूति मैं अपने संपूर्ण शरीर में कर सकता हूँ । और हे भगवती मॉं वह आप ही हो जो मुझे नीरक्षीरविवेक प्रदान कर अनेको विद्याओं में निपुण बनाती हो । हे भगवती कृपावंत होकर मेरा अनंतकोटी प्रणाम स्विकार करे !
विश्व के हम सभी सहजयोगीयो ने मधुरस प्रदान करनेवाली इस शीतल चैतन्य लहरीयों को अपने हृदय मे अनुभूत किया है । और आपसे हृदय से बिनती करते है की आप भी इस मधुर अनुभूती प्राप्त कर सकते है, आईये सहजयोग सिखते है।
जय श्री माताजी

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