संगठन जाए भाड़ में... गुटबाज़ी ज़िंदाबाद!

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इंदौर। भाजपा के नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष श्री खंडेलवाल ने पदभार संभालते ही आदेश जारी किया — "विधायक-मंत्री आपस में सामंजस्य बढ़ाएं, एक-दूसरे के घर 'भोज' रखकर एकता दिखाएं।"
अब आदेश था तो पालन भी होना ही था... और सबसे पहले इसका पालन इंदौर में हुआ। लेकिन जिस बात की आशंका थी, वही हुआ — गुटबाज़ी भोज में नहीं घुल पाई!

कैलाश जी के घर आयोजित भोज में नज़र नहीं आए  कटार वाली दीदी, मन की करने वाले मनोज पटेल, और भाभी की सहानुभूति से हारने वाले लखन दादा!
हालांकि "बाबा" ज़रूर आए — शायद विधानसभा और पार्टी दोनों में अपनी भूमिका सुरक्षित रखने का उनका तरीका कुछ अलग है।

अब बाकी बचे विधायकों की बारी है... लेकिन बड़ा सवाल वही —
क्या भोज से भाजपा की 'बाहरी एकता' और 'भीतर की दूरी' मिट पाएगी?

असल में इंदौर भाजपा में गुटबाज़ी कोई नई बीमारी नहीं है, ये तो तीन दशक पुरानी परंपरा है, जिसे संगठन ने खुद सींचा है।
जब 30-35 साल से एक ही नेता को बार-बार टिकट मिलता है, तो बाकी नेता गुटबाज़ नहीं बनेंगे तो क्या चौकीदार बनेंगे?

चाहे प्रदेश अध्यक्ष कोई भी हो... चाहे स्वयं मोदी जी ही क्यों न आ जाएं —
इंदौर की भाजपा का गुटबाज़ी प्रेम खत्म नहीं हो सकता!

*और अंत में इतना ही,भोज से पेट भर सकता है, मन नहीं

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