"पालखी वारी: श्रद्धा, सेवा और संत परंपरा का अद्भुत संगम"
संपादकीय
हर वर्ष जब आषाढ़ मास की पावन बेला आती है, तो महाराष्ट्र की भूमि पर एक अद्भुत दृश्य उभरता है – पालखी वारी। यह केवल एक धार्मिक यात्रा नहीं, बल्कि विश्वास, भक्ति और सामाजिक समरसता की चलती-फिरती पाठशाला है।
सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर लाखों वारीकरी जब संत ज्ञानेश्वर और संत तुकाराम की पालखी के साथ पंढरपुर के विठोबा मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं, तो हर कदम पर भक्ति की झंकार और मानवता की गूंज सुनाई देती है। यह यात्रा न केवल शरीर को, बल्कि आत्मा को भी शुद्ध कर देती है।
इस वारी में जात-पात, वर्ग, अमीरी-गरीबी – सबकुछ पीछे छूट जाता है। लोग एक समान वेश में, एक ही धुन में, एक ही उद्देश्य के साथ चल पड़ते हैं – “विठोबा के दर्शन”।
"ज्ञानबा-तुकाराम" की गूंज, अभंगों की स्वर-लहरियां और डोलती हुई पालखी – यह नज़ारा आधुनिक जीवन में अध्यात्म का जीवंत उदाहरण है।
आज जब समाज तेजी से भौतिकता की ओर बढ़ रहा है, तब यह वारी हमें सादगी, सेवा और सत्संग की सीख देती है।
आइए, हम सभी इस परंपरा से जुड़ें – चाहे कदमों से नहीं, तो मन से सही।
पालखी वारी सिर्फ यात्रा नहीं – यह जीवन का दर्शन है।
✍️ आपका
गोपाल गावंडे
प्रधान संपादक – रणजीत टाइम्स