प्रकाश पर्व: इतिहास, महत्व और आरंभ

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लेखक: गोपाल गावंडे, संपादक, रणजीत टाइम्स
प्रकाश पर्व, जिसे सिख धर्म में गुरु पर्व के रूप में भी जाना जाता है, सिख धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण त्योहार है। इस पर्व को सिख गुरुओं की शिक्षाओं और उनके द्वारा दिखाए गए मार्ग के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए मनाया जाता है। 

इतिहास और आरंभ
प्रकाश पर्व का आरंभ सिख धर्म के पहले गुरु, गुरु नानक देव जी के जन्मदिवस से हुआ था। गुरु नानक देव जी का जन्म 1469 में तलवंडी (अब ननकाना साहिब, पाकिस्तान) में हुआ था। उनका जन्मदिन कार्तिक माह की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है, जो अक्टूबर-नवंबर के बीच आता है। इसके बाद सिख धर्म के अन्य गुरुओं के जन्मदिन को भी प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाने लगा, जैसे कि गुरु गोबिंद सिंह जी का प्रकाश पर्व, जो पौष माह में मनाया जाता है।

प्रकाश पर्व का महत्व
प्रकाश पर्व का मुख्य उद्देश्य सिख समाज को गुरुओं की शिक्षाओं का पालन करने और आध्यात्मिक जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रेरित करना है। इस दिन गुरुद्वारों में अखंड पाठ (गुरु ग्रंथ साहिब जी का निरंतर पाठ), कीर्तन दरबार (धार्मिक गीतों का गायन), और नगर कीर्तन (धार्मिक शोभायात्रा) का आयोजन किया जाता है। समाज सेवा और लंगर सेवा इस पर्व के महत्वपूर्ण अंग हैं, जो सेवा, समानता और एकता के सिद्धांतों को प्रोत्साहित करते हैं।

सांस्कृतिक और धार्मिक योगदान
प्रकाश पर्व सिख समाज की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर को संरक्षित रखने का काम करता है। यह पर्व समाज में सेवा, दान और परोपकार के कार्यों को बढ़ावा देता है। सिख गुरुओं की शिक्षाएं हमें जीवन में सच्चाई, विनम्रता, और सेवा का मार्ग अपनाने की प्रेरणा देती हैं। 

उपसंहार
प्रकाश पर्व, सिख धर्म की आध्यात्मिक यात्रा का प्रतीक है। यह पर्व न केवल सिख समाज के लिए, बल्कि पूरी मानवता के लिए शांति, सेवा और मानवता की भलाई के संदेश को प्रचारित करता है। यह हमें याद दिलाता है कि जीवन में सच्चाई, सेवा, और समानता के सिद्धांत ही वास्तविक प्रकाश हैं जो हमें सही दिशा दिखाते हैं।

प्रकाशित: गोपाल गावंडे, संपादक, रणजीत टाइम्स 

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