भारतीय संस्कृति में दृढ़ विश्वास से ही सहजयोग में उन्नति संभव है

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परम पूज्य श्री माताजी ने सहजयोग की  संस्थापना के प्रारंभ से ही सहजयोगियों को निर्देशित किया है, कि सहजयोग का मूल आधार सनातन भारतीय संस्कृति ही  है। जो भी सहज योग को अपनाता है उसकी उत्क्रांति तभी संभव है, जब वह इस संस्कृति के लिए अपने मन में दृढ़ विश्वास व सम्मान जागृत कर लेता है। परंतु श्री माताजी ने स्वयं ही हमें इस बात के लिए भी सचेत किया है, कि प्रत्येक सभ्यताओं के समान हमारे यहां भी धर्म के मूल तत्व में अनेक कुरीतियां, अंधविश्वास तथा बाह्य आडंबर घुल-मिल गए हैं। शुद्ध ज्ञान के अभाव में हम इन आडंबरों तथा अंधविश्वास को ही धर्म समझने लगते हैं। शुद्ध ज्ञान की प्राप्ति कुंडलिनी जागरण के पश्चात आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति को सहज ही हो जाती है। भारतीय संस्कृति के अनेक प्रमुख मूल्यों व पहलुओं में से एक है दानधर्म। भारतीयों को इस धर्म के बारे में कुछ भी अधिक कहने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि हमारे यहां दान कर्म हमारे यहां की प्रतिचर्या का अभिन्न अंग है। गाय को प्रथम ग्रास से लेकर श्वान को दिए जाने वाले अंतिम ग्रास तक तथा समाज के आर्थिक व सामाजिक रूप से पिछड़े हुए वर्ग को त्यौहारों-पर्वों के अवसर पर प्रेम पूर्वक भेंट किए जाने वाले मिष्ठान, अन्न, वस्त्रादि हमारी ग्रामीण अंचल की विशेषता रही है। 
     हमारा इतिहास  राजा हरिश्चंद्र, राजा शिवि, महर्षि दधीचि, दानवीर कर्ण जैसे सैकड़ों दानवीरों से समृद्ध हैं। भारतवर्ष में राजाओं के दरबार सदैव ही कलाकारों, विद्वानों, ब्राह्मणों आदि की आश्रम स्थली हुआ करते थे। 
        श्री माताजी ने भी अपनी अमृतवाणी में हमें मार्गदर्शित किया है कि, "आशीर्वाद के रूप में जो धन मनुष्य को प्राप्त होता है वह उदारता पूर्वक सृजनात्मक कलाकारों, लेखकों, कवियों की कला तथा जरूरतमंद लोगों की वास्तविक मदद कर आनंद लेने के लिए होता है।"( 'पराआधुनिक युग' पुस्तक से)
       श्री माताजी के आख्यान के अनुसार, "सोचना चाहिए पैसा जो है परमात्मा ने हमारे लिए दान के लिए दिया है। हम बीच में एक माध्यम बने खड़े हुए हैं..... इसका जो शुभ कर्म हो सकता है वह करना है और इससे जो भी लोगों की मदद हो सकती है वह करना चाहिए और अच्छे मार्ग में सन्मार्ग में रहना चाहिए।" (15/3/1984 दिल्ली)
    व्यक्तिगत उन्नति के साथ साथ सामूहिकता  सहजयोग की विशेषता है। सहजयोगी, विश्व निर्मला धर्म का अंग तथा परमात्मा के कार्य का माध्यम हैं। अतः संपूर्ण विश्व हमारा कर्मक्षेत्र होना चाहिए तथा उदारमन से हमें प्रत्येक जरूरतमंद की सहायता के लिए तत्पर रहना चाहिए।
इस जीवंत, शाश्वत, आत्मज्ञान को प्राप्त करने हेतु सहजयोग से संबंधित  जानकारी टोल फ्री नंबर 1800 2700 800 से प्राप्त कर सकते हैं। सहजयोग पूर्णतया निःशुल्क है।

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