रक्षाबंधन: रिश्तों की डोरी, बराबरी का संकल्प

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रक्षाबंधन केवल त्योहार नहीं, रिश्तों की जिम्मेदारी याद दिलाने का दिन है। कलाई पर बंधी एक पतली-सी डोरी हमें बताती है कि रिश्ते उपहारों से नहीं, उपस्थिति, सम्मान और विश्वास से चलते हैं। राखी की असली ताकत इसी भरोसे में छिपी है—कि हम एक-दूसरे की सुरक्षा, गरिमा और प्रगति के साथी हैं।

वचन से आगे—साझी सुरक्षा की भावना
पारंपरिक रूप से बहन राखी बाँधती है और भाई सुरक्षा का वचन देता है। पर आज के समय में सुरक्षा एकतरफ़ा दान नहीं, दोतरफ़ा दायित्व है। बहनें शिक्षा, करियर और आत्मनिर्भरता से परिवार की ढाल बनी हैं; भाई भी केवल रक्षक नहीं, बहन के सपनों के सह-यात्री हैं। यह पर्व हमें बताता है कि रिश्तों में अधिकार से पहले कर्तव्य और अपेक्षा से पहले अपनापन होना चाहिए।

परंपरा का नया अर्थ—सिर्फ भाई-बहन नहीं, हर अपना
राखी आज खून के रिश्ते से आगे बढ़ चुकी है। बहनें अपनी सहेलियों, शिक्षिकाओं, गुरुजनों—even सहकर्मियों—को भी राखी बाँधती हैं। यह संदेश देता है कि सुरक्षा और स्नेह का दायरा समाज तक फैला है। वृद्धाश्रमों में बुज़ुर्गों के साथ राखी, अनाथालयों में बच्चों के साथ उत्सव—ये पहल हमें मानवीय संवेदनाओं से जोड़ती हैं।

सम्मान, संवाद और बराबरी—यही सच्ची 'रक्षा'
समय बदल रहा है। रिश्ते अब ‘हक़’ से नहीं, परस्पर सम्मान से टिकते हैं। बहन की इच्छा, निर्णय और स्वतंत्रता का सम्मान ही उसकी असली रक्षा है। घर-परिवार में संवाद की संस्कृति बनाना, बेटियों की शिक्षा और करियर को प्राथमिकता देना, और घर के काम में बराबरी निभाना—ये सब राखी की डोरी को मजबूत करते हैं।

उत्सव और उपभोक्तावाद—संतुलन ज़रूरी
बाज़ार की चमक-दमक के बीच संयम न खोएं। महंगे तोहफ़ों से ज़्यादा मायने रखता है समय देना और साथ निभाना। स्थानीय कारीगरों से पर्यावरण-सम्मत राखियाँ लेना, कृत्रिम सजावट की जगह सरल, टिकाऊ सज्जा चुनना, और दिखावे से दूर संवेदनशील उत्सव मनाना—यही संस्कार हैं जो आने वाली पीढ़ियों तक छाप छोड़ते हैं।

नागरिक कर्तव्य का पर्व—हम सब जिनके ऋणी हैं
इस रक्षाबंधन पर उन लोगों को भी याद करें जो हमारे लिए चौबीसों घंटे खड़े हैं—सीमा पर तैनात जवान, पुलिस-प्रशासन, डॉक्टर-नर्स, सफाई मित्र, आपदा-रेस्क्यू दल। उन्हें धन्यवाद कहना और जहाँ संभव हो, उनके परिवारों के साथ यह पर्व मनाना—यह भी हमारे समाज की डोरी को मज़बूत करता है।

रिश्तों की असल परीक्षा—मुश्किल समय में साथ
अच्छे दिनों में साथ चलना सरल है; मुश्किल घड़ी में साथ निभाना ही रिश्तों की असल परीक्षा है। बहन की पढ़ाई में आर्थिक सहायता, भाई के संघर्ष के समय नैतिक सहारा, परिवार के बुज़ुर्गों की सेवा—ये वे काम हैं जिनसे राखी का वचन वास्तविक जीवन में उतरता है।

इस रक्षाबंधन तीन संकल्प

1. सम्मान: किसी भी रिश्ते में मर्यादा और गरिमा सर्वोपरि।


2. संवाद: मन में गाँठ न रखें, बात करें—शिष्ट, साफ़ और समय पर।


3. सहयोग: ज़रूरत होने पर आगे बढ़कर मदद करें—समय, समझ या साधनों से।

 

समापन
रक्षाबंधन हमें बताता है कि रिश्ते किसी एक दिन के तिलक या मिठाई से नहीं, रोज़मर्रा के आचरण से पनपते हैं। राखी की डोरी भले सूत की हो, पर उसका अर्थ लोहे जैसा मज़बूत है—समानता, संवेदना और साथ निभाने का। आइए, इस बार हम केवल वचन न दें—वचन निभाने का प्रण लें।

 

— आपका गोपाल गावंडे
संपादक, रणजीत टाइम्स

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