सहजयोग द्वारा अक्षयतृतीया पर परमात्मा से प्राप्त करें 'अक्षयपद' का आशीर्वाद
संपूर्ण भारत वर्ष में वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि ‘अक्षय तृतीया’ का पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है । अक्षय तृतीया साढे़ तीन मुहूर्तों में से एक शुभ मुहूर्त है, मान्यता है कि इस दिन परमपिता परमेश्वर से हम जो कुछ भी शुद्ध इच्छा रख कर मांगते हैं, वो हमें अक्षय रूप में मिलता है। ‘अक्षय’ शब्द का अर्थ है , जिसका कभी भी क्षय नहीं होता, जो कभी भी नष्ट नहीं होता , और इस संसार में सारी चीजें जैसे की बड़े बड़े साम्राज्य, पद, प्रतिष्ठा और सारी भौतिक समृध्दि एक दिन नष्ट होनेवाली है, यहॉं तक की हमारा शरीर जो पंच महाभूतों से बना है, वो भी एक दिन नष्ट हो जायेगा , परंतु इस शरीर के हृदय में स्थित आत्मतत्व अक्षय है ,अजर है , अमर है । भारतीय तत्वज्ञान पुर्नजन्म पर विश्वास रखता है, जिसके अनुसार आत्मा तो अजर, अमर, अविनाशी है, मृत्यु तो केवल शरीर की होती है। सहजयोग में अक्षय तृतीया का विशेष महत्व है।
प. पू. श्रीमाताजी कहते हैं कि, अनादि काल से लोग इस दिन परमेश्वर से कुछ न कुछ माँगते है। धर्मस्थलों पर जाकर लोग पूजा पाठ या अभिषेक करते हैं और परमेश्वर से पैसा, पद, प्रतिष्ठा, आरोग्य, बच्चे या इस भौतिक जीवन मे आयी हुई समस्याओं का समाधान मांगते है। प. पू. श्रीमाताजी कहते हैं, अपनी माँग शुद्ध और सामूहिक होनी चाहिये। उदाहरणार्थ हम परमेश्वर से संतुलित बरसात मांग सकते हैं जिस कारण इस धरती पर संतुलित और उपयुक्त मात्रा में फसल हो तथा सभी को पर्याप्त भोजन मिले। 'सर्वे भवन्तु सुखिना, सर्वे सन्तु निरामया' अर्थात इस धरतीपर सभी लोग निरामय और सुखी बनें ऐसी प्रार्थना हमें करनी चाहिये।
परंतु इस धरती पर सभी लोग कब सुखी होंगे? श्रीमाताजी कहते हैं, जब उन्हें अक्षय पद प्राप्त होगा। अक्षय का अर्थ है, जिसका कभी क्षय ना हो, और ये अक्षय पद हम हमारे आत्मतत्व को पाये बगैर नहीं प्राप्त कर सकते। इस अक्षयपद की प्राप्ति पुराणों के अनुसार बालक ध्रुव और भक्त प्रल्हाद को हुई थी। ध्रुव आज भी आकाश में प्रकाशवान हैं और भक्त प्रल्हाद को अग्नि तक जला नहीं सकी। पूर्वकाल में इस अक्षय पद को पाने के लिए गुरुगृह जा कर १२ साल तक तपस्या करनी पड़ती थी, तब गुरु उन पर अनुग्रह करते थे। परंतु आज वसंत का समय है। इस भ्रांति वाले कलियुग में सहजयोग के माध्यम से आत्मस्वरूप को आप स्वयं ही अनुभव कर सकते हैं इसके बारे में ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। जिन्हें यह अक्षय पद यानि कि आत्मसाक्षात्कार की प्राप्ति हुई है इनके अनुभवों को साझा कर सकते हैं ।अपने मन और हृदय में आने वाली सभी शंकाओं का निराकरण कर सकते हैं। शर्त केवल एक ही है, इस अक्षय पद को आपको हृदय से माँगना होगा और इसके प्रति समर्पित होना होगा।
इस आत्मानंद के बारे में भगवद्गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं , जिस किसी साधक को यह अक्षयपद प्राप्त होता है, वह उस अक्षयपद को परमपद समझता है। उसके जीवन में और कुछ पाना बाकी नहीं रह जाता, वो मेरुपर्वत जैसे दु:खों में भी विचलित नहीं होता | अपनी आत्मा में लीन होकर अपने ही स्वरुप का आनंद उठाता है |
इस अक्षय तृतीया पर परमात्मा से अक्षय पद की प्राप्ति हेतु सहजयोग ध्यान का अनुभव प्राप्त करें। सहजयोग से संबंधित जानकारी निम्न साधनों से प्राप्त कर सकते हैं। यह पूर्णतया निशुल्क है। टोल फ्री नं – 1800 2700 800 बेवसाइट - sahajayoga.org.in यूट्यूब चैनल – लर्निंग सहजयोगा