दैनंदिन क्रियाकलाप में ईश्वर का सानिध्य होना ही धर्म है

  • Share on :

सहजयोग आज का महायोग
संघर्ष के समय परमात्मा को याद करना स्वाभाविक है।   परंतु जब हम पूर्ण संतुष्टि में हों तो भी परमात्मा से जुड़े रहना हमारी इस  संतुष्टि को स्थाई बनाने के लिए जरुरी है।   हमें कभी नहीं भूलना चाहिए कि परम के संग जुड़ने में ही हमारे जीवन की सार्थकता है। जो  साथ जाएगा ही नहीं, जो जरुरी नहीं उसमें हमारा चित्त ज्यादा लगता है, और जो साथ जाना है उसका हम चिंतन ही नहीं करते हैं। साथ क्या जाना है?  साथ जायेगा हमारे अंदर स्थापित होने वाला धर्म।   धर्म,  ईश्वर की आराधना की विधि नहीं है बल्कि ईश्वर को पाने की आकांक्षा है।   
जीवन में संघर्ष तो करना ही पड़ता है।  वह संघर्ष हम अपने जीवन को जीते हुए अपने परिवार के लिए, उनके सुरक्षा एवं संरक्षण के लिए करते हैं, वो‌ हमारा दायित्व है।  इस संघर्ष के दौरान हम ईश्वर से सफलता हेतु प्रार्थना करते हैं तो फल प्राप्त होगा या नहीं यह हम पूर्ण विश्वास के साथ नहीं कह सकते क्योंकि  यहां हमारी ईश्वर से की गई इच्छा शुद्ध‌ नहीं है।   शुद्ध इच्छा के अंदर जागृत होते ही हम पवित्र होने लगते हैं, ईश्वर के सानिध्य में रहने लगते हैं।   सहज योग के माध्यम से इच्छा को शुद्ध‌ इच्छा में परिवर्तित करने का मार्ग मिलता है और हम परमेश्वर के चित्त में स्थान  पाते हैं।  इससे बड़ी और क्या उपलब्धि हो सकती है हमारे लिए। हम एक सामान्य इंसान से दिव्य‌ हो जाते हैं। और ऐसा होते ही हर जिम्मेदारी हमें आसान‌ लगने लगती है।
इस संबंध में परमपूज्य श्री माताजी निर्मला देवी कहती है-
'एक बार जब आप सच्चाई को धारण कर लेते हैं तो आपका अपना जीवन ही लोगों को विश्वास दिलायेगा कि आप दिव्य हैं। जो कुछ भी आप करते हैं, वह लोगों को यकीन देगा कि आप दिव्य हैं, और जो कुछ भी आप कहेंगे, लोग जान जाएंगे कि यह दिव्य शक्ति से आ रहा है'
अपने दैनंदिन जीवन के हर क्रियाकलाप  के साथ ईश्वर के चित्त में भी स्थान पा लें तो जीवन कितना आसान होगा ना?  चलिए इस पर विचार करते हैं और जुड़ते हैं दिव्य सहज योग से। नज़दीकी सहजयोग ध्यान केंद्र की जानकारी टोल फ्री नंबर 1800 2700 800 से प्राप्त कर सकते हैं या वेबसाइट www.sahajayoga.org.in पर देख सकते हैं।

Latest News

Everyday news at your fingertips Try Ranjeet Times E-Paper