ऋषि वशिष्ठ और ऋषि विश्वामित्र की वर्तमान समय में बहुत आवश्यकता है रावण वध के लिए वही दे सकते हैं अस्त्र-शास्त्र की शिक्षा और सामाजिक शिक्षा

  • Share on :

दशहरा पर्व पर विशेष

हाटपीपल्या से संजय प्रेम जोशी की रिपोर्ट

2 अक्टूबर को पूरे विश्व में विशेष कर भारतवर्ष में बुराई को प्रतीक के रूप में मानकर रावण के पुतले के रूप में रावण का  दहन किया गया अब सोचने वाली बात यह है। कि अहंकारी मदमस्त रावण को मारने वाले राम एवं लक्ष्मण जिनका जीवन आराम से राजमहल में  राजसी जीवन जेसा व्यतीत हो रहा था । और वैसे भी उनके पिता दशरथ की इतनी धाक थी कि आसपास के कोई भी राज्य उन पर चढ़ाई करने से पहले 10 बार सोचते एसी स्थिति में बाल्य काल में गुरु वशिष्ठ चारों राजकुमारों को राम लक्ष्मण भरत शत्रुघ्न महल से निकलकर गुरु कुल गए और वहां पर प्रारंभिक शिक्षा दी शिक्षा के साथ-साथ आसुरी शक्तियों से लड़ने के लिए भी साहसिक शक्ति प्रदान की दशरथ पुत्र सभी नाजुक और कोमल राजकुमार भी प्रारंभिक शिक्षा में खरे उतरे और उन्होंने  शारीरिक राजसी शक्तिशाली जीवन का एहसास किया उन्हीं चार भाइयों में दो श्रेष्ठ भाइयों का चयन राम एवं लक्ष्मण विश्वामित्र ऋषि ने किया और उन्हें शस्त्र विद्या के साथ शास्त्र विद्या में भी निपुण करते हुए ज्ञान दिया कि उनका ज्ञान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए जहां भी निर्बल पर अत्याचार हो वह उसके खिलाफ आवाज उठाएं बस क्या था। राम एवं लक्ष्मण ने उस समय की तात्कालिक आसुरी शक्तियों को मारना शुरू किया विधि का विधान ब्रह्म ज्ञानी जानते थे। और आगे अयोध्या के राजकुमार राम को जब वनवास का सामना करना पड़ा तो उनके लिए नया नहीं था ।कारण यह की गुरुकुल में बहुत कुछ रहना-सहना सीख चुके थे। शस्त्र विद्या में निपुण होने के कारण  निडरता उन में आ गई थी। लक्ष्मण भी शास्त्र विद्या में उनके साथ थे कुछ शस्त्र इस प्रकार के सीखे थे ।जिसमें दोनों की आवश्यकता जरूर थी इसलिए उन्होंने भी वनवास में जाने की जिद की और साथ गए बस यहीं से शुरू होती है गुरु की महिमा और उनके बताए गए संस्कार उन पर आपत्ति आई सीता का हरण हुआ और अन्य राज्य के शक्तिशाली रावण से सामना हुआ कई दिनों तक चले युद्ध में आखिरकार राम एवं लक्ष्मण ने समस्त शस्त्र शक्तियों का और शास्त्र शक्तियों का उपयोग करते हुए रावण की समस्त शक्ति खत्म करने के साथ-साथ रावण का खात्मा भी कर दिया। यह सब वृतांत सीख देता है ।कि राजा दशरथ भी बना होगा और गुरु वशिष्ट गुरु विश्वामित्र भी बनना होगा तब जाकर रावण नाशक यंत्र बनेंगे पुत्र मोह किसी न किसी को तो त्यागना होगा जिस प्रकार सेना  में जाने वाले  सैनिक के माता-पिता बच्चों को देश रक्षा के लिए पहुंचाते हैं। वही सोच देश में लाना पड़ेगी अकेले दशरथ एवं अकेले विश्वामित्र से काम नहीं चलेगा पुरुषोत्तम राम भी बनना होगा तब जाकर रावण का वध होगा वर्तमान स्थिति में देव और दानव में अंतर करना मुश्किल है। दशहरा पर्व ऊर्जा का पर्व है। यह याद दिलाता है की बुराई को खत्म किया जा सकता है। लेकिन खत्म करने के लिए भी संयुक्त अभियान जरूरी है। कारण यह हे  की बुराई कभी अकेली नहीं रहती है। उसका संगठन भी बहुत बड़ा रहता है ।इसलिए उससे लड़ने के लिए सत्यता का संगठन भी मजबूत और टिकाऊ होना चाहिए। इसलिए आने वाली पीढ़ी को रामायण का ज्ञान और उसकी बातों का ज्ञान होना बेहद जरूरी है। रामायण घटना काल्पनिक नहीं है।वह जीवन का सत्य है।

लेखक वरिष्ठपत्रकार है 
संजय प्रेम जोशी

Latest News

Everyday news at your fingertips Try Ranjeet Times E-Paper