सहजयोग - आदिशक्ति पूजा
सहज योग से पल्लवित साधकों का आत्मसमर्पण
संपूर्ण विश्व के सहयोगियों द्वारा रविवार 8 जून को श्री आदिशक्ति पूजा के माध्यम से सहजयोग संस्थापिका श्री माताजी निर्मला देवी जी के श्री चरणों में अपनी श्रद्धा व भक्ति समर्पित की गई। सभी प्रमुख सहजयोग ध्यान केंद्रों पर आदिशक्ति पूजा का आयोजन किया गया। प्रत्येक वर्ष की भांति प्रमुख आयोजन नासिक स्थित आदिशक्ति धाम श्री सप्तश्रृंगी में किया गया। श्री माताजी जो साक्षात् श्री आदिशक्ति का अवतरण हैं, ने अपनी अमृतवाणी में श्री आदिशक्ति यानि स्वयं की महिमा का वर्णन करते हुए 6 जून 1993 को कबेला कहा था कि,
"....... आदिशक्ति परमात्मा के दैवी प्रेम की अवतरण हैं, पवित्र प्रेम तथा करुणा की शक्ति है। उनके हृदय में केवल पवित्र प्रेम है, पर यह अत्यन्त शक्तिशाली है। यही प्रेम उन्होंने पृथ्वी माँ को प्रदान किया है, पृथ्वी माँ सुन्दर वस्तुओं के रूप में अपना प्रेम उड़ेलती रहती हैं। सितारों तथा आकाशगंगा के माध्यम से उसकी सुन्दरता की अभिव्यक्ति होती है।........ परम माँ के प्रेम के कारण ही ब्रह्माण्ड की हर रचना का अस्तित्व है। दैवी प्रेम से ही शरीर के हर अंग की रचना की गयी, इसका ज़र्रा ज़र्रा दैवी प्रेम को प्रसारित करता है। मेरी चैतन्य लहरियाँ दैवी प्रेम के अतिरिक्त कुछ भी नहीं।"
सहज योग के साधक इसे अपना परम कर्तव्य और अधिकार मानते हैं कि वे आदिशक्ति के अवतरण की बात जन जन तक पहुँचाये और जो आत्मिक सुख वे स्वंय प्राप्त कर रहे हैं, उसका मार्ग औरों को भी दिखाये। सहज साधक अंतर से आदिशक्ति से जुड़े हैं और यह उनका परम सौभाग्य है कि वे अपने अंतर से प्रवाहित हो रहे चैतन्य लहरियों से अन्यों को भी प्रकाशित कर सकते हैं और आदिशक्ति परमपूज्य श्री माताजी के आशीर्वाद का अधिकारी बना सकते हैं। आदिशक्ति को गुरु और माता स्वरूप में पा लेने का सबसे बड़ा उदाहरण यही है अन्यथा पूर्व में साधु संत मुश्किल से एक या दो लोगों को शिष्य बना पाते थे।
पूर्ण ब्रह्माण्ड के सृजन के पश्चात आदिशक्ति ने अपनी अवशिष्ट शक्ति जो 'कुण्डलिनी शक्ति' है' को मानव के रीढ़ की हड्डी के नीचे स्थित त्रिकोणाकार अस्थि में स्थापित कर दिया। तीन महाशक्तियाँ (महालक्ष्मी, महासरस्वती और महाकाली की शक्ति) और अवशिष्ट शक्ति, जो कि इच्छाशक्ति (कुंडलिनी) है, यही हमारे पुनरुत्थान और आत्मिक उत्थान का मार्ग है।
इस कुण्डलिनी और शक्ति केंद्रों को लेकर वे एक क्षेत्र की रचना करती हैं जिसे हम शरीर में चक्र कहते हैं। सर्वप्रथम वे सिर के तालु भाग में इन चक्रों का सृजन करती हैं, इन्हें हम चक्रों की पीठ कहते हैं और तब नीचे की ओर आकर वे चक्रों की सृष्टि करती हैं। एक बार जब यह सब कुछ हो जाता है तो वे विकास प्रक्रिया द्वारा मानव का सृजन करती हैं....... और जल में सूक्ष्मदर्शी अस्तित्व से इसका विकास आरम्भ होता है।... अपनी विकास लीला के लिये वे पृथ्वी माँ को ही सर्वोत्तम स्थान मानती हैं, वहाँ पर वे आदिशक्ति इस सूक्ष्म अस्तित्व को सृजित करती हैं।... पृथ्वी माँ, पूरा वातावरण, पंचतत्व सभी की एकाकारिता आदिशक्ति से थी, तो इन सभी का सृजन वे सुगमता से कर सकीं। परन्तु जब मानव की बारी आयी तो उसे स्वतन्त्रता प्राप्त हो गयी। यही एक ऐसी जाति है जिसमें अहंकार है तथा जो सोच-विचार की माया में फंसी है। अहंकार के कारण माया का उनपर प्रभाव पड़ा और वे विश्व का सृजन करने वाले सिद्धातों को वे भुला बैठे। मानव ने सृष्टि की उपभोग को अपना अधिकार समझ लिया। वे आदिशक्ति और पराशक्ति को समझने या मानने को गंभीरता से नहीं लिया। उन्हें लगा सब कुछ उन्हीं के परिश्रम का फल है और वे इन सभी चीज़ों के स्वामी हैं। आज हम देख सकते हैं कि मानव को प्राप्त स्वतन्त्रता के कारण ही पूरे विश्व में उथल-पुथल है।
अपनी शक्तियों को जानने, आत्मा को समझने और ईश्वर के साम्राज्य में प्रवेश पाने हेतू सहज योग से जुड़ें और इसके लिए आप अपने नज़दीकी सहजयोग ध्यान केंद्र की जानकारी टोल फ्री नंबर 1800 2700 800 से प्राप्त कर सकते हैं या वेबसाइट www.sahajayoga.org.in पर देख सकते हैं। सहज योग पूर्णतया निशुल्क है।