सहज योग को परा आध्यात्मिक युग का प्रारंभ कह सकते हैं

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5 मई सहजयोग, सहस्त्रार दिवस 

सहज योग परमपूज्य श्री माताजी निर्मला देवी प्रणित एक ऐसा  योग है जिसमें हमारे त्रिकोणाकार अस्थि  में साढ़े तीन कुंडल में बैठी कुंडलिनी शक्ति जागृत होती है, मध्य नाड़ी के माध्यम से ऊपर की ओर उठती है और छ: चक्रों को संतुलित करते हुये सातवें चक्र सहस्त्रार चक्र का भेदन करती है, तब साधक आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करता है।           आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करना सरल है, इसे पाने की पात्रता सिर्फ यही है कि हम इसे पाने की शुद्ध इच्छा करें। आत्मसाक्षात्कार प्राप्त होने की अनुभूति साधक को तत्क्षण हो जाती है, साधक यह महसूस भी करता है कि उसे ईश्वरीय साम्राज्य में प्रवेश मिल चुका है।  उसके बाद यह साधक की इच्छा पर निर्भर रहता है कि वह इस योग की गहनता प्राप्त करने हेतु कितना समर्पित हो सकता है।  हम जितना ध्यान करेंगे, समर्पण भाव रखेंगे, उतनी हम गहनता पायेंगे।   हम स्वयं को स्वस्थ रख पायेंगे और औरों को भी चैतन्य के माध्यम से स्वस्थ रख सकेंगे।  भूतकाल खत्म हो चुका है, भविष्य मौजूद नहीं है अतः हमें वर्तमान का आनंद मनाना है, जो वास्तविकता है और यही सहज योग की विशेषता है।    
    सहज योग से जुड़ने के बाद हम जान पाते हैं कि परमपूज्य श्री माताजी निर्मला देवी सहस्त्रार चक्र की स्वामिनी  हैं।  आदिशक्ति के रुप में अपने  इस अवतरण में वे सभी दिव्य गुणों को अपने अंदर समन्वित की हुई है और सदैव मुख्य स्त्रोत के रुप में क्रियाशील रहती है।  श्री माताजी का जन्म 21 मार्च, 1923 को छिंदवाड़ा, भारत में हुआ था।   5 मई  1970  को श्री माताजी ने  भारत के नारगोल, गुजरात के समुद्र के किनारे बैठकर सामुहिक सहस्त्रार खोला।  वे सच्चे साधकों को और अधिक भटकते देखना सहन नहीं कर पा रही थी। मानव को उत्थान प्राप्त हो, वे आध्यात्मिक उत्क्रांति  पायें यही श्री माताजी का उद्देश्य था।  एक साल बाद 1971  में श्री माताजी ने मुट्ठी भर लोगों से आत्मसाक्षात्कार देना शुरू किया और यहीं सहज योग का जन्म हुआ।  
 इसीलिए हम इसे सहज योग का जन्मदिन कह सकते हैं।  लोगों को आध्यात्मिक जागृति देने के लिए श्री माताजी ने पूरे संसार का भ्रमण किया। श्री माताजी का यह कार्य समस्त सहज योगियों के लिए वरदान रहा। हर सहज योगी के पुनर्जन्म का मार्ग खुल गया। सहस्त्रार चक्र के खुलते ही ईश्वरीय साम्राज्य में साधक प्रवेश पाता है।  आत्मिक उत्थान के लिए आवश्यक है कि साधक का सहस्त्रार चक्र  खुला रखना है, पर यह कैसे संभव है?  यह प्रश्न बहुत ही सहजता से  साधक के मन में आता है। 
"यह आसान है" इस संबंध में श्री माताजी कहती हैं, "आपको पूरी तरह से, पूर्ण रुप में मुझे समर्पित होना होगा।   यदि आपको लगता है आपका सहस्त्रार अब तक नहीं खुला है, तब आपको क्षमा मांग लेनी है।  आपको कहना है, ' यदि मैंने कुछ गलत किया है तो कृपया मुझे क्षमा कर दें, तब आप ठंडी चैतन्य लहरियां महसूस करेंगे। '
साथ ही श्री माताजी कहते हैं, 
"आज, वो दिन है जब मैं घोषणा करती हूँ कि मैं ही वो हूंँ जिसे मानवता की रक्षा करनी है।  मैं यह घोषणा करती हूँ कि मैं  ही आदिशक्ति हूँ, जो हर माता की माता है, एक आदि माता है।  मैं ईश्वर की इच्छा शक्ति हूँ जो इस पृथ्वी पर अवतरित हुई  है, ईश्वर की कृति मनुष्य को उसके होने का अर्थ देने के लिए। और मुझे विश्वास है कि मेरे प्रेम, सबुरी  और शक्ति से मैं अपने उद्देश्य में सफल होउंगी"
दरअसल सहस्त्रार चक्र नीचे के छ: चक्रों  का संयोजन है वह एक शून्य स्थान है, जिसके अगल बगल एक हजार नाडियां  है। और जब कुंडलिनी शक्ति लिम्बिक क्षेत्र में प्रवेश करती है, तब ये नाडियां प्रकाशित हो जाती है और वो ज्वाला सी महसूस होती है, कोमल स्थिर ज्वाला, इंद्रधनुष के सात रंगों में और अंत में  ज्वाला एकीकृत होती है, और स्फटिक की स्पष्ट ज्वाला सी बन जाती है।   सभी सात चक्र स्फटिक की तरह स्पष्ट हो जाते हैं, जब सहस्त्रार में एकीकृत होते हैं।   जब सहस्त्रार प्रकाशित होता है, तब यह स्थिर जलते रहने वाले ज्वाला का रुप ले लेता है।  सुंदर गुणों से मानव जीवन को प्रकाशित करने वाले सहज योग को समझने हेतु एक कदम उठाने की आवश्यकता है, हम सुख शांति से मालामाल हो जायेंगे। 
 सहजयोग ध्यान केंद्र की जानकारी टोल फ्री नंबर 1800 2700 800 से प्राप्त कर सकते हैं या वेबसाइट www.sahajayoga.org.in पर देख सकते हैं। सहज योग पूर्णतया निशुल्क है।

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