अपराधबोध से मुक्ति दिलाने में सहायक है सहजयोग
परमपूज्य श्री माताजी प्रणित सहजयोग आत्मसाक्षात्कार की गाथा है । जब हम अंतर्मुखी होकर अपनी जीवनयात्रा का अवलोकन करते हैं , तो पाते हैं कि जीवन दु:ख, दर्द, तनाव, कठिनाईयों से भरा है, हम सभी सुख और आनंद पाने की स्पर्धा में दौड़ रहे हैं, परंतु जीवन में एक भी व्यक्ति हमें नहीं मिलता कि जो कहता हो, हम अंतर्मन में खुश हैं आनंदी हैं । परमपूज्य श्री माताजी प्रणित सहजयोग हमें हमारी आत्मा से यानि कि अंतर्मन के आनंद से मिलाता है । सहजयोग में आत्मसाक्षात्कार पाना सहज है सरल है, जब हम परमपूज्य श्री माताजी की प्रतिमा के सामने बैठते हैं या किसी पब्लिक प्रोग्राम में आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने जाते हैं तो हमसे प्रार्थना करवायी जाती है, कि ‘‘ मैं शुद्ध आत्मा हूं ’’ यह एक महान मंत्र है । मैं मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार ये कुछ भी नहीं, परंतु एक शुद्ध आत्मा हूं , ये कहना और इस आत्मतत्व से एकरूप होना यह एक महान योग है , जो हमें हमारी सारी परेशानियों से मुक्ति दिलाता है, क्योंकि हमारी आत्मा निर्लेप, निरंजन और अखंड आनंद देने वाला परम प्रेमास्पद मानो एक अमुल्य रत्न है, और इसे पाना ही हमारे जीवन का लक्ष्य ।
प्रश्न आता है इतना सुंदर यह आत्मतत्व प्राप्त होने में हमें क्या कठिनाई है, तो परमपूज्य श्री माताजी कहते हैं, आपका दायां और बायां पक्ष। आपके इड़ा और पिंगला नाड़ी से आने वाले अनगनित विचार और इन विचारों के कारण ही जीवन की सारी समस्याएं हैं । श्री माताजी इन विचारों को दो भागों में विभाजित करती हैं। आत्मसाक्षात्कार प्राप्ति में अड़चन है ‘अपराध बोध’ की भावना जो बायें पक्ष से आती है। श्री माताजी कहते हैं कि, आप कभी भी खुद को अपराधी मत समझो | भूतकाल में, आत्मसाक्षात्कार पूर्व और बाद में जो आपने कुछ गलत किया हो, तो अब से ,आज से, इसी वक्त से भूल जाइये। अपराधबोध एक अवचेतन क्रिया है। जब इस प्रकार का अनैतिक आचरण किया जाता है, यहां तक कि तुम्हें यह भी पता ना हो कि नैतिकता क्या है, अगर तुम धर्मों को नही जानते , हो सकता है तुम ऐसा कुछ कर रहे हो , जो तुम्हें नहीं करना चाहिये था, तो इसके बारे में भूल जाओ, स्वयं को अलग करो, जिसने गलती की है, वह तुम्हारा अहंकार है, तुम नहीं। तुम पवित्र हो क्यों कि तुम आत्मा हो, तो उसके लिये स्वयं को दोष मत दो, तुम्हे परेशान नहीं होना है। उदाहरण के लिये अगर यंत्र में कोई दोष है तो उसमें बिजली का कोई दोष नहीं है, तो हमें यंत्र को ठीक करना है । अब, अगर तुम सोचते हो कि तुम बिजली हो तो तुम इसे ठीक कर सकते हो, लेकिन अगर तुम सोचते हो कि, तुम यंत्र हो तो, तुम उसे ठीक नहीं कर सकते क्यों कि फिर से तुम अपने अवचेतन में चले जाते हो | परमपूज्य श्री माताजी कहते हैं, हम मनोविश्लेषक बिल्कुल नहीं हैं, यह पता लगाने के लिये कि मनौवैज्ञानिक रूप से हमारे अंदर क्या गलत है ? मनोवैज्ञानिक केवल बाएं पक्ष के बारे में सोचते हैं लेकिन वे नहीं जानते कि जब तुम ऐसा करने की कोशिश करते हो तो तुम अपना अहंकार विकसित करते हो । जब तुम इसके बारे में सोचना शुरू करते हो, यह कहां से आया, तुरंत तुम व्यक्ति का अहंकार विकसित करते हो और व्यक्ति अहंकार यात्रा पर चला जाता है । यह अवचेतन यात्रा समस्या से भी अधिक खतरनाक है क्योंकि जिन लोगों को अहंकार होता है वे पूरे समाज को परेशान करते हैं , जबकि जिनके पास प्रति अहंकार है वे केवल स्वयं को, परेशान करते हैं । अहंकार वाले लोग , प्रति अहंकार वाले लोगों की तुलना अधिक खतरनाक और कष्टदायक होते हैं ।
सहजयोग हमें अपने अहंकार और प्रति अहंकार से सहजता में मुक्ति दिलाता है, क्योंकि जब हमें हमारा आत्मसाक्षात्कार प्राप्त होता है, तो हमारी कुंडलिनी मॉं हमें हमारे अहंकार और प्रति अहंकार के प्रति सजग बनाती हैं, हमें उन दो शत्रुओं से दूर रखकर, एक मॉं का निर्वाज्य प्रेम प्रदान करती हैं, आपको भी यह निर्व्याज प्रेम पाना है, तो सहजयोग ध्यान में आपका स्वागत है।
इस जीवंत, शाश्वत, आत्मज्ञान को प्राप्त करने हेतु सहजयोग से संबंधित जानकारी टोल फ्री नंबर 1800 2700 800 से प्राप्त कर सकते हैं। सहजयोग पूर्णतया निःशुल्क है।

