सकारात्मक परिवर्तन लाने वाली एक सुंदर, आनंददायी जीवन पद्धति है सहजयोग

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परमपूज्य श्री माताजी प्रणित ‘सहजयोग’ एक सरल, आनंददायी ध्यान है, एक सुंदर जीवन पद्धति है, जो आपके जीवन में सकारात्मक बदलाव लाकर आपको, प्रेम से, करूणा से, परिपूर्ण बनाती है । विश्व के किसी भी सहजयोगी से आप बात करेंगे तो वह साधक आपको आनंद की, सहजयोग ध्यान से प्राप्त सुंदर चैतन्य की, चक्र और नाड़ियों की ही बात करेगा । उसके मन में यही उमंग सदा बनी रहेगी की ‘निर्विचारिता में मुझे जो आनंद प्राप्त हो रहा है, इसे मैं किसे बताऊँ? आज मुझे कोई तो भी ऐसा साधक मिले जिसे मैं इस चैतन्यमयी ध्यान के बारे में परमपूज्य श्री माताजी और उनसे प्राप्त आशीर्वादों के बारे में बात कर सकूँ ।
         आजकल के जीवन में सर्वत्र भागदौड़ है, भौतिकता और नकारात्मकता अपनी चरमसीमा पर है । बच्चे, युवा इतना ही नहीं यथाशक्ति, बड़ी उम्र के लोग भी भ्रमित हैं, सही और गलत में निर्णय नहीं कर पा रहे हैं। परमपूज्य श्री माताजी कहते हैं बड़े आश्चर्य की बात है कि मानव जितना कुछ मिथ्या है उसे कितने जोर से पकड़ लेता है और जो सत्य है उसे पकड़ने में कतराता है ।  ‘केनोपनिषद’ में इंद्र भगवान को कैसे आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हुआ इसकी कहानी है । समुद्र मंथन हुआ, परमपिता परमेश्वर ने देवताओं पर कृपा की, इसलिये देवताओं ने इस युद्ध में विजय प्राप्त की, परंतु इस विजय से देवताओं में अहंकार आ गया कि हमने अपने बल पर जीत हासिल की है । कोई भी व्यक्ति हो या देवता अगर वे अहंकार या प्रति अहंकार की चपेट में आते हैं तो उनका पतन निश्चित है । परमपिता परमेश्वर को देवताओं पर दया आ गई । उनका अहंकार नष्ट करने के लिये ‘परमपिता परमेश्वर’ ने एक दिव्य यक्ष का रूप लिया। जब दिव्य यक्ष इंद्रनगरी में आया तो उनका अपूर्व तेज, देखकर सभी देवता अचंभित हुए । दिव्य यक्ष का पता लगाने के लिये इंद्रदेव ने प्रथम अग्निदेव को भेजा । दिव्य यक्ष ने अग्निदेव से पूछा आप कौन हैं? इस प्रश्‍न से अग्निदेव को बड़ा गुस्सा आया, उन्हें लगा संपूर्ण ब्रह्मांड मे मेरी कीर्ति है, परंतु इन्होंने मुझे पहचाना नहीं, अग्निदेव बोले, मैं ही ज्ञानवेदा,सर्वज्ञ अग्नि हूँ। दिव्य यक्ष ने फिर पूछा आप में कौनसा सामर्थ्य है? अग्नि बोले, मैं एक क्षण में इस संपूर्ण ब्रह्मांड को जला सकता हूं । दिव्य यक्ष ने उनके सामने एक सूखी घास का तिनका रखा और बोले कि जलाकर दिखाईये, परंतु क्या आश्चर्य? अग्निदेव अपनी पूर्ण ताकत लगाकर भी उस तिनके को नहीं जला सके और अपमानित होकर वापस इंद्रनगरी चले आये । इसके बाद वायु देवता का भी गर्व हरण हो गया और दिव्य यक्ष को पहचानने का जिम्मा इंद्रदेव पर आ गया । जब इंद्रदेव यक्षनगरी पहुंचे तो दिव्ययक्ष अंतर्ध्यान हो गये, परंतु इंद्रदेव वापस नही आये, वहीं बैठे? और मन में आदिशक्ति की प्रार्थना करने लगे । इंद्रदेव की हृदय से निकली हुई प्रार्थना सुनकर साक्षात् उमाकुमारी आदिशक्ति वहॉं उपस्थित हुई और उन्होंने इन्द्र देव को आत्मसाक्षात्कार प्रदान कर परमपिता के सत्य से परिचित कराया । 
         सहजयोग के माध्यम से सत्य के साधक, जो चैतन्यमयी आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त करना चाहते हैं, तो मात्र अपना अहंकार त्यागकर सच्चे हृदय से आदिशक्ति श्री माताजी के समक्ष अपने आत्मसाक्षात्कार के लिए प्रार्थना करें।
सहजयोग से संबंधित  जानकारी  टोल फ्री नं – 1800 2700 800 से प्राप्त कर सकते हैं। सहजयोग पूर्णतया निःशुल्क है।

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