ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति का सहज मार्ग है सहजयोग
"ब्रह्म आत्मा एक है, सत्चित आनन्द रूप।
कह टेऊँ ज्ञानी जिसे, जानत निज स्वरूप।।"
ब्रह्म और आत्मा एक ही हैं, जो सत् , चित् और आनंद स्वरूप है, और ज्ञानी व्यक्ति ही अपने इस वास्तविक स्वरूप (आत्मा) को जानते हैं कि वे स्वयं वही ब्रह्म हैं, जो सभी दुखों से परे है और जिससे हर वस्तु उत्पन्न होती है।
ब्रह्म और आत्मा एक है। परम सत्ता (ब्रह्म) और व्यक्तिगत आत्मा (आत्मा) अलग-अलग नहीं, बल्कि एक ही हैं, जैसा कि अद्वैत वेदांत सिखाता है।
सत्-चित्-आनंद रूप, ब्रह्म का स्वरूप तीन गुणों से युक्त है-
सत्- शाश्वत, अविनाशी अस्तित्व,
चित्- पूर्ण चेतना या ज्ञान
आनंद- परमानंद या असीम सुख
ज्ञानी पुरुष ही इस बात को कहते या जानते हैं। वे अपने वास्तविक, दिव्य स्वरूप को पहचानते हैं कि वे स्वयं ब्रह्म हैं, शरीर या मन नहीं। यह दोहा भी आत्म-साक्षात्कार (Self-realization) की बात करता है, जहाँ साधक को यह बोध होता है कि वह कोई सीमित जीव नहीं, बल्कि वही एक, शाश्वत और आनंदमय ब्रह्म है, जिससे यह सारा ब्रह्मांड बना है। यह ज्ञान अज्ञानता को मिटाकर व्यक्ति को परम मुक्ति दिलाता है, जैसा कि उपनिषद और वेदांत में बताया गया है।
तो आइये परमात्मा के उस असीम प्रेम,आशीर्वाद और ज्ञान को प्राप्त करने के लिए इस मूल शक्ति को सृष्टि के मूल उस ब्रह्म से मिलाने के लिये आज ही सहजयोग से जुड़ें। श्री माताजी प्रणित सहजयोग कुंडलिनी जागरण द्वारा आत्मसाक्षात्कार प्राप्ति की सहज ध्यान पद्धति है। सहजयोग के माध्यम से विश्व भर में लाखों लोग आध्यात्मिक व व्यक्तिगत उत्थान को प्राप्त कर रहे हैं।
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