सहजयोग  अंधविश्वासों व कर्मकाण्डों से परे ब्रह्मानुभूति का विज्ञान है

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संपूर्ण ब्रह्मांड की संरचना में दो प्रकार के तत्वों की भूमिका है, जैविक व अजैविक। जो आदिशक्ति के स्वरूप श्री लक्ष्मी व श्री सरस्वती द्वारा संचालित हैं। लक्ष्मी श्री विष्णु की शक्ति हैं तो सरस्वती श्री ब्रह्मा जी की और ब्रह्मा का जन्म विष्णु की नाभि से माना जाता है। लक्ष्मी तत्व पदार्थों के रूप में स्पंदित होता है तो सरस्वती तत्व नाद के रूप में। पदार्थ व शब्द दोनों ही मनुष्य जीवन का अहम हिस्सा हैं परंतु दोनों को ही आदिशक्ति के तीसरे स्वरूप महाकाली ने माया के आवरण में ढका हुआ होता है। पदार्थों का आकर्षण मनुष्य को स्थूल से ऊपर नहीं उठने देता। वहीं शब्दों की माया हमें किसी का प्रिय किसी, का विरोधी सफल या असफल बना देती है। शब्द तीन प्रकार के होते हैं - पहले जिनमें विभिन्न अक्षर प्रमुख होते हैं जो हमारे द्वारा बोले जाते हैं और दूसरे के द्वारा सुने जाते हैं, दूसरे जिन्हें सिर्फ हम सुन पाते हैं और तीसरे हैं मानस जहां वर्ण या क्षर प्रमुख होते हैं। हम अधिकांशतः दूसरी प्रकार के शब्दों के द्वारा छले जाते हैं, इसमें हमारे विचार, योजनाएं, स्मृतियां, लिखना, पढ़ना, आदि शामिल हैं।
      हमारे मन में पदार्थों को देखकर जो इच्छाएं जागृत होती हैं वही शब्दों के रूप में प्रकट होती हैं। ज्ञान शब्द नहीं होते, शास्त्र कहते हैं ज्ञान पैदा नहीं होता और ना ही नष्ट किया जा सकता है ज्ञान जन्म से ही हमारे साथ होता है, जैसे-जैसे आत्मा से हमारी दूरी कम होती जाती है, आत्मा अनावरित होती जाती है वैसे वैसे आप को ज्ञान की प्राप्ति होती जाती है। और तब मानस शब्दों की अनुभूति हमें सूक्ष्म शरीर में विभिन्न चक्रों पर वर्णों के रूप में होती है। और ज्ञान की इस अवस्था में वर्णों का यह स्पंदन ब्रह्मांड के नाद से संयुक्त हो जाता है और तब संपूर्ण ब्रह्मांड का रहस्य स्वयं अंतस में प्रकट होने लगता है । जिसे स्वयं का ज्ञान नहीं होता उसके अन्य सांसारिक ज्ञान भी भ्रांतिपूर्ण व अपूर्ण होते हैं। हम सदैव दूसरों के अनुभवों को ज्ञान के रूप में ग्रहण करते रहते हैं परंतु वास्तव में अविष्कारी या वैज्ञानिक वही होता है जो स्वयं का ज्ञान व अनुभव अर्जित करता है। पुस्तकें मार्गदर्शक हो सकती हैं ध्येय नहीं।
श्री माताजी निर्मला देवी जी द्वारा प्रतिस्थापित सहजयोग आत्मा के आवरणों से परे ब्रह्मानुभूति का विज्ञान है। जो अंधविश्वासों, कर्मकाण्ड व आडंबरों से परे है। सहजयोग विवेक व बोध के द्वारा क्रिया एवं विचारों से बाहर निकाल कर ध्यान का मार्ग प्रशस्त करता है। और हमें उस ज्ञान व विद्या का साक्षात्कार प्रदान करता है जो हमारे साथ जन्मी है, जो सहज है। सहज योग में हम स्पंदनों की भाषा को समझने लगते हैं जो अधिक शक्तिशाली, तीव्रगामी व वास्तविक होती है। आप अपने किसी दूर बैठे हुए व्यक्ति के बारे में सिर्फ स्पंदनों  से जान सकते हैं दूसरों की परेशानियों को ये स्पंदन ठीक कर सकते हैं विभिन्न रोगों का उपचार कर सकते हैं। 
   स्पंदन के इस विज्ञान का अनुभव प्राप्त करने हेतु आप जानकारी निम्न साधनों से पा सकते हैं।  टोल फ्री नं – 1800 2700 800
बेवसाइट‌ - sahajayoga.org.in

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