सूक्ष्म चक्रों, नाड़ी तंत्र व कुंडलिनी शक्ति का विज्ञान है सहजयोग

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परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी जी ने सहजयोग में मानव शरीर की संरचना की अत्यंत सूक्ष्म व्याख्या की है इस व्याख्या को आत्मसात कर हम अपने उत्थान का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं। सामान्यतः हम सभी इस तथ्य से परिचित हैं कि मानव शरीर पंचमहाभूतों (भूमि, आकाश, वायु, अग्नि व जल) से मिलकर बना है। सनातन काल से हमारे मनुऋषियों ने मानव शरीर में स्थित नाड़ियों (ईड़ा, पिंगला व सुषुम्ना) व चक्रों (मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, हृदय, विशुद्धि, आज्ञा व सहस्त्रार) की व्याख्या भी की है तथा आधुनिक चिकित्सा शास्त्र ने भी हमारे तंत्रिका तंत्र की व्याख्या की है, परंतु सामान्य मनुष्य के लिए इन चक्रों, नाड़ीतंत्रों अथवा तंत्रिका तंत्रों के ज्ञान - विज्ञान को समझना इनमें सामंजस्य स्थापित करना सदैव ही अत्यंत कठिन कार्य रहा है। अतः सामान्य मनुष्य कभी भी इस भारतीय आध्यात्मिक विज्ञान से स्वयं को जोड़ नहीं सका‌। परंतु वर्तमान समय में श्री माताजी निर्मला देवी जी ने इस जटिलता को सर्वसाधारण के लिए अत्यंत सुगम बना दिया है। श्री माता जी के सानिध्य में जब हम कुंडलिनी जागरण द्वारा आत्म साक्षात्कार को प्राप्त करते हैं तथा नियमित ध्यान धारणा द्वारा अपना उत्थान करते हैं तब हम सहज ही परम पिता की चैतन्यता, सूक्ष्मता, पवित्रता व स्वचालित दैवीयशक्ति ऋतंभरा प्रज्ञा से एकाकार हो पाते हैं। 
        श्री माताजी के अनुसार, "मानव शरीर में तीन प्रकार के नाड़ी तंत्र होते हैं पहला मध्य नाड़ी तंत्र (सेंट्रल नर्वस सिस्टम) दूसरा अनुकम्पी नाड़ी तंत्र (सिंपैथेटिक नर्वस सिस्टम) जिसका बायां व दांया भाग है, तीसरा पराअनुकम्पी नाड़ी तंत्र (पैरासिंपैथेटिक नर्वस सिस्टम)।   ('परा आधुनिक युग'  - पुस्तक से)।
       श्री माताजी ने अपनी अमृतवाणी में उपदेशित किया है कि, "हमारे सारे चक्र जिन पीठों से संचालित होते हैं वह पीठ हमारे मस्तिष्क में स्थित है और हमारे मस्तिष्क से ही सेंट्रल नर्वस सिस्टम के साथ इन चक्रों का चलन वलन हो सकता है लेकिन होता नहीं है। पैरा सिंपैथेटिक नर्वस सिस्टम से ही हम इन चक्रों को संचालित करते हैं।......... सत्य हमारे सेंट्रल नर्वस सिस्टम से ही जाना जा सकता है यही ज्ञान हमारी उत्क्रांति का लक्षण है बाकी सब दिमागी जमा खर्च है।" (16 /2 / 1985)
 हमारे जीवन में चक्रों, नाड़ियों व वाइब्रेशंस का सामंजस्य तभी रहता है जब हम नियमित ध्यान साधना करते हैं। बिल्कुल उसी प्रकार जैसे संगीत अथवा कला में नित्य साधना से ही आप उच्च स्तर को प्राप्त करते हैं। अतः ईश्वर भक्ति व आराधना भी सुख हो या दुख हर परिस्थिति में चलते रहना चाहिए। 
अपने नज़दीकी सहजयोग ध्यान केंद्र की जानकारी टोल फ्री नंबर 1800 2700 800 से प्राप्त कर सकते हैं।

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