डिप्रेशन तथा तनाव, जैसी मानसिक व्याधियों में अत्यंत कारगर है सहजयोग

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इस घोर कलियुग में मानसिक समस्या एक बहुत बडी त्रासदी है।  मानसिक रोग यानि सिर्फ पागलपन नहीं पर डिप्रेशन भी है।  अपने मन को स्वयं के काबू में‌ नहीं रख पाने से ही ऐसी समस्याएं आती है।  इस प्रतियोगिता वाले युग में स्वंय को औरों से कम पाने पर इंसान अंदर ही अंदर घुटने लगता है और मानसिक व्यथा को‌ झेलता है।  सफल इंसान भी और ज्यादा पाने की ललक में स्वयं को इस प्रतियोगिता से दूर नहीं‌ रख पाता है और मन की समस्या का सामना करने को विवश होता है। 
हम सभी ने अपने जीवन में कई गलतियां की होती है, जिसे हम भले ही सबसे छुपा लें पर अपने आप से नहीं छुपा सकते हैं।  हमारी इन गलतियों को ईश्वर सदैव क्षमा कर देते हैं पर हम और हमारा अंतर्मन स्वयं को निर्दोष मानने से  रोक नहीं पाते हैं और कितना भी चाहे इस आंतरिक अपराध बोध से मुक्ति‌‌ नहीं मिलती।  
मानसिक व्याधियों का एक बड़ा कारण अपराध बोध का भार ही है।  असंतुलन की स्थिति में व्यक्ति और बड़ा अपराध कर बैठता है अथवा आत्महत्या जैसा पाप कर बैठता है, जैसे कि अंत में हिटलर ने किया था। अमेरिका के प्रसिद्ध मनोचिकित्सक ब्रायन बांस ने अपनी एक पुस्तक में लिखा है कि पुनर्जन्म सत्य है और जीव अपने पूर्वजन्मों के कर्मों के अनुरूप अगले जन्म में वैसी मनोस्थिति व व्यक्तित्व को प्राप्त करता है।  अक्सर लोग मनोचिकित्सकों या आध्यात्मिक गुरुओं के पास अपराध बोध से मुक्ति पाने के लिए जाते हैं, परंतु आज तक इस व्याधि का कोई कारगर इलाज संभव नहीं हुआ है।  विशेषज्ञों के मतानुसार पश्चाताप और विवेक ऐसे उपाय हैं जिनके द्वारा इससे कुछ हद तक मुक्ति पाई जा सकती है। पश्चाताप यदि केवल दिखावे के लिए किया जाएगा तो उससे कोई लाभ नहीं होगा। साधारणतया लोग यह सोचते हैं कि इसके लिए बस एक अच्छे गुरु की आवश्यकता होती है जो सर्वप्रथम अपराधी के विवेक को जाग्रत करता है और उसके बाद उसे पश्चाताप की सही विधि बताता है। इसीलिए आदिकाल में राक्षसों के भी गुरु होते थे जैसे कि शुक्राचार्य थे।
परंतु सहज योग ध्यान प्रक्रिया में मानव को   स्वयं का गुरु बनाकर मानसिक व्यथा से मुक्त किया जाता है।  श्री माताजी  कहती हैं निर्दोष भाव से मुक्त हो अपने अंतर के ईश्वर से एकाकारिता ही आत्मोन्नति का मार्ग है।  जब हमारी कुंडलिनी शक्ति जागृत होकर।  उर्ध्वगामी होती है और विशुद्धि चक्र को‌ स्पर्श करती है तब हमारे अन्दर का दोषी भाव‌ पूर्णरुपेण समाप्त होता है और हम स्वयं पूर्णतया निर्दोष हो जाते है।  यह भाव‌ हमारे प्रगति मार्ग को प्रशस्त करता है। 
सहजयोग की प्रणेता परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी जी ने इसकी व्याख्या करते हुए 1जुलाई1992 को दिए गए प्रवचन में कहा था, "मैं चाहती हूं कि आपके मन में अपने प्रति बहुत मधुर भावना रहे। आपने जो भी गलतियाँ की हैं, उन्हें भूल जाइए। इसे भूल जाओ क्योंकि यह सर्वव्यापी शक्ति क्षमा का सागर है, इसलिए आप ऐसी कोई गलती नहीं कर सकते जो करुणा के इस सागर में पूरी तरह से विलीन न हो सके।" 
श्री माताजी का यह कथन तभी संभव हो पायेगा जब सहज योग पद्धति से ध्यान कर भूतकाल के दुष्प्रभाव से छुटकारा पायें।  चलिये हम सभी इस करुणा के सागर में विलीन हो स्वयं को अंदर से शक्तिशाली बनाते‌ हैं, जुड़ते हैं सहज योग से।
 नज़दीकी सहजयोग ध्यान केंद्र की जानकारी टोल फ्री नंबर 1800 2700 800  से प्राप्त कर सकते हैं।

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