सहजयोग ध्यान से आरोग्य रूपी सौभाग्य का उदय होता है

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आरोग्यं परमं भाग्यं स्वास्थ्यं सर्वार्थसाधनम्॥
उपरोक्त वर्णित सूत्र के अनुसार आरोग्य सबसे बड़ा भाग्य है तथा स्वस्थ शरीर से सभी साधनों को प्राप्त किया जा सकता है। परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी प्रणित सहजयोग में  साधक जब शुद्ध इच्छाशक्ति जागृत कर इच्छा करता है तो उसे ये पवित्रतम आत्मसाक्षात्कार प्राप्त होता है। उसे अपनी पंच ज्ञानेन्द्रियों द्वारा अपने आत्मनिरीक्षण की दिव्य कला प्राप्त होती है। सहजयोग साधक को सबसे प्रथम चीज आरोग्य प्रदान करता है। संस्कृत में एक लोकोक्ति है 'आरोग्यम धनसंपदा' अर्थात् निरोगी होना सबसे बड़ा सुख होता है। सहज योग ध्यान मे पारंगत होने पर हम अनेक बीमारियों से सहज ही निजात पा लेते हैं। हमारे शरीर में स्थित तीन प्रकार के तंत्रिका तंत्र, परानुकंपी ( parasympathetic nervous system ), अनुकंपी ( sympathetic nervous system ) तथा मध्य तंत्रिका तंत्र ( central nervous system ) तथा सात चक्रों पर आधारित है सहजयोग। ध्यान से जब हमारा मूलाधार चक्र यानि कि पेल्विक प्लेक्सस शुद्ध होकर पोषित होता तो हमें बद्धकोष्ठता, पाइल्स और प्रोस्टेट ग्रंथि से संबंधित सारी बिमारियों से निजात दिलाता है। द्वितीय चक्र स्वाधिष्ठान जब सहज योग ध्यान से पोषित होता है तो हमारी विचारधारा को नियंत्रित करता है, डायबिटीज़, दुःख - या चिंता देने वाले विचारों से छुटकारा दिलाकर हाई ब्लड प्रेशर जैसी बिमारियों से राहत दिलाता है। हमारे सभी चक्र शरीर के किसी न किसी अवयव से संबंधित हैं, इसलिये जब हम सहजयोग ध्यान करने लगते हैं तो हमें शारीरीक आरोग्य अनायास ही प्राप्त हो जाता है। हमारा सबसे महत्वपूर्ण चक्र है  आज्ञा चक्र क्योंकि ये चक्र हमारे अहंकार को नियंत्रित करता है । हमें अगर शुद्ध आत्मज्ञान चाहिए तो हमें हमारे अहंकार व प्रतिअहंकार  को परमात्मा के चरणों पर समर्पित करना होगा तब हमें आनंद के साम्राज्य में ले जाने वाला ये पवित्रतम आत्मज्ञान सहज ही प्राप्त हो जायेगा।
सहजयोग से संबंधित  जानकारी निम्न साधनों से प्राप्त कर सकते हैं। यह पूर्णतया निशुल्क है। टोल फ्री नं – 1800 2700 800 बेवसाइट‌ - sahajayoga.org.in

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