मां आदिशक्ति के अवतरण की प्रत्यक्षानुभूति है सहजयोग ध्यान

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परमात्मा का मानव अथवा अन्य किसी रूप में अवतरण हिंदू धर्म की एक महत्वपूर्ण अवधारणा है, अवतारवाद मानवता को सही मार्ग दिखाने के लिए महत्वपूर्ण है। जब लोग धर्म से भटक जाते हैं, तो ईश्वर अपने अवतार के माध्यम से धर्म की पुनर्स्थापना करते हैं।   
     कलियुग में जब चारों ओर त्राहि त्राहि मची है, धर्म के नाम पर युद्ध चल रहे हैं, समाज में भेदभाव, वैमनस्य, रिश्तों में दरार,  जीवन जीने की प्रतियोगिता के कारण   हताशा लोगों के मन में घर कर रही है, चाहे वो आर्थिक रुप से संपन्न हो या गरीब।  मानव शांति की तलाश में भटक रहा है।  ऐसे समय में परमपूज्य श्री माताजी ने मानव को उद्धार देने के उद्देश्य से अवतरित होकर सहज योग की स्थापना की। सहज योग से मानव के कल्याण हेतु  गहन चिंतन और मनन के पश्चात् अंततः नारगोल में 5 मई के दिन परमपूज्य श्री माताजी ने ध्यानावस्था में ब्रम्हांड का सहस्त्रार खोला और सत्य के साधकों को आत्मसाक्षात्कार का मार्ग दिखाया।  आत्मसाक्षात्कार सनातन संस्कृति में ईश्वर प्राप्ति का एकमात्र मार्ग है जिसके लिए साधक गहन ध्यान, हठयोग, भक्तियोग, संन्यास आदि अनेक माध्यमों से कठिन साधना करता है तब भी एक जीवन में सभी इसे प्राप्त नहीं कर पाते।
    आज लाखों साधक सहज ध्यान से ईश्वरीय अनुभूति को आत्मसात कर रहे हैं।  सहजयोग में पहली बार आने वाले साधकों को इतनी सहजता से ईश्वर का पाना असंभव सा लगता है, पर जागृति होते ही हथेली और सिर के तालु भाग में प्रवाहित हो रहे चैतन्य से हम परमपूज्य श्री माताजी के आदिशक्ति स्वरुप को पहचान लेते हैं। 
   सहज योग धीरे धीरे बढ़ता है। सहज योग में कुंडलिनी का जागरण तत्क्षण हो जाता है, बस साधक को इस ज्ञान की शुद्ध इच्छा होनी चाहिए।  लेकिन अपने हाथों के चैतन्य को समझने और निर्विचार स्थिति में पहुंचने के लिए ध्यान में गहनता पानी होती है ताकि हम अपने अंदर स्थित नाड़ियों  और चक्रों की स्थिति को समझ सकें। इस अद्भुत ध्यान पद्धति की संस्थापिका महज एक गुरु नहीं बल्कि ईश्वर का अवतरण हैं।  आज संसार में जितने भी सहज योग के सच्चे साधक हैं सभी अपनी माँ की शक्ति के उत्तराधिकारी हैं।  सभी को मां ने वो शक्ति दी है कि वे एक साथ हजारों लोगों को आत्मसाक्षात्कार दे सकें।  यही सहज योग की विशेषता है कि यहाँ हर साधक स्वयं का गुरु है।  
     नये साधक को ध्यान  के दौरान कुछ क्षण शांत बैठने के बाद अपने निकटतम परिवेश में एक शांति महसूस होने लगती है।  अभी भी साधक दरवाज़ों के बंद होने और गाड़ियाँ गुजरने जैसी बाहरी आवाज़ों से अवगत होते रहते है, परंतु साथ ही एक शांत ऑरा की आभा को अपने ऊपर छाए हुए महसूस  भी करते हैं।  इससे पता चलता है कि हमारी कुंडलिनी पूरे प्रवाह में है, और हम निश्चिंत हो सकते हैं कि हम  एक सौम्य‌ प्रक्रिया से लाभान्वित हो रहे हैं। हमें अपने हाथों, चेहरे या शरीर के आसपास सामान्य झुनझुनी या ठंडक की अनुभूति भी हो सकती है। यह इस बात का भी प्रमाण है कि सिस्टम उसी तरह काम कर रहा है जैसा उसे करना चाहिए।   दूसरी ओर, अगर पहले कुछ दिनों में हमें थोड़ा या कुछ भी महसूस न हो तो चिंता नहीं करनी चाहिए,  श्रद्धा व विश्वास से नियमित ध्यान करने से कुछ ही समय में हम चैतन्य को अनुभव करने लगते हैं। 
अपने नज़दीकी सहजयोग ध्यान केंद्र की जानकारी टोल फ्री नंबर 1800 2700 800 या वेबसाइट www.sahajayoga.org.in पर देख सकते हैं। सहज योग पूर्णतया निशुल्क है।

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