सहजयोग ध्यान व्यक्तित्व में पंचतत्वों की सूक्ष्म शक्ति को अभिव्यक्त करता है
सहजयोग में श्री माताजी की अनुकम्पा से कुंडलिनी जागरण द्वारा आत्मसाक्षात्कार प्राप्ति के पश्चात जिन पंचतत्त्वों से हम बने हैं, चैतन्य लहरियाँ उन तत्त्वों के सूक्ष्म तत्त्व से हमें जोड़ने लगती हैं। यह बड़ी सूक्ष्म बात है, इसकी सूक्ष्मता हमें समझनी चाहिए।
श्री माताजी के अनुसार,
* प्रकाश अभिव्यक्त होने वाला प्रथम तत्त्व है और उसका सूक्ष्म तत्त्व है तेज, आत्मसाक्षात्कार प्राप्त होने के पश्चात व्यक्ति (गहन सहजयोगी) का मुखमण्डल तेजोमय हो उठता है।
* स्थूल वायु का सूक्ष्म तत्त्व आपको प्राप्त होने वाली शीतल चैतन्य लहरियाँ है। आत्म साक्षात्कार के बाद आप केवल लहरियाँ ही नहीं प्राप्त करते, शीतलता का भी अनुभव करते हैं।
* जल तत्त्व सूक्ष्म रूप में जब अभिव्यक्ति होता है तो वह सहजयोगी की कठोर त्वचा को कोमल करता है, उनके अंदर का जल ही उनके चेहरे की त्वचा को चमक और पोषण प्रदान करता है। इसी के साथ आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति अत्यन्त मृदु और विनम्र हो जाते हैं।
* आप में अग्नि भी है परन्तु यह अत्यन्त शान्त अग्नि है। यह किसी अन्य को नहीं जलाती, आपके अंदर बुराइयों को और आपके माध्यम से अन्य लोगों की बुरारियों को आपकी यह अग्नि जला देती है। यदि आप पूर्णत: विकसित सहजयोगी हैं तो अग्नि आपको कभी नहीं जलाएगी क्योंकि अग्नि तत्त्व का सार आपको प्राप्त हो जाता है।
* पृथ्वी माँ है। पृथ्वी की बहुत सी सूक्ष्मताएं हममें आ जाती हैं। इनमें से एक गुरुत्वाकर्षण है । गुरुत्वाकर्षण की अभिव्यक्ति से व्यक्ति अत्यन्त आकर्षक हो जाता है। पृथ्वी माँ की तरह हम भी अत्यन्त सहनशील और धैर्यवान बनने लगते हैं।
* आपके अन्दर आकाश तत्त्व भी कार्य करने लगता है, यह आपके चित्त के माध्यम से कार्य करता है चित्त डालने के लिए आपको मुझसे नहीं कहना पड़ता, आप स्वयं चित्त डालिए, और कार्य हो जाएगा। [२५-१२-१९९८]
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