'सत्यम् वदं प्रियम् वदं' वेद वाक्य को प्रमाणित करता है सहजयोग
जीवन में आसपास देखने पर हम पाते हैं कि हर सफल व्यक्ति अपनी मधुर वाणी और कोमल व्यवहार से ही जाना जाता है। व्यापार ही नहीं जीवन के हर क्षेत्र में मधुर और सच्चा व्यवहार एक चमत्कारिक औषधि की तरह काम करता है। मधुर व्यवहार से सभी हमारे अपने हो जाते हैं। मधुर वाणी व व्यवहार के बिना तो व्यापार की कल्पना तक करना बेकार है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को सफलता प्राप्त करने के लिए मधुर व्यवहार सीखना चाहिए। लेकिन क्या मधुर व्यवहार सीखा जा सकता है? बिलकुल नहीं... बल्कि मधुर व्यवहार तो हमें अपने अंदर से पैदा करना होगा।
वेद वाक्य 'सत्यम् वदं प्रियम् वदं' एक साधना से कम नहीं है। लोग सही बात को इतने कड़वे ढंग से बोलते हैं कि सुनने वाला तहस नहस हो जाता है और कहा ये जाता है कि हम तो सत्य बोल रहे हैं, और सत्य कड़वा ही होता है। पर यह सही नहीं। बात कड़वी है तो भी अभिव्यक्ति सरलता से, मधुर वाणी से हो तो प्रभाव अच्छा पड़ता है। तर्क यह भी होता है कि दवाई भी कड़वी होती है तभी स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होती है। परंतु जीवन में लोगों को सत्यवचन भी मधुरता के साथ कहने चाहिए नहीं तो उसका उल्टा असर होता है। सामने वाला व्यक्ति आपको समझे यह जरुरी नहीं वो दुश्मन तक बन जाता है। कहा जाता है
कागा काको धन हरे, कोयल काकू देत... तुलसी मीठे वचन ते जग आपनो करि लेत।
यानि कौवा किसका धन लूटता है फिर भी लोग उसको अपनी मुंडेर पर नहीं बैठने देते हैं। वहीं कोयल किसी को कुछ नहीं देती फिर भी लोग कोयल का स्वागत करते हैं, यह चमत्कार सिर्फ मधुर वाणी का ही है।
कहते हैं कि जीवन में चेहरे की खूबसूरती की भूमिका मात्र दस प्रतिशत होती है, पर वाणी की खूबसूरती की भूमिका नब्बे प्रतिशत होती है। इसलिए शब्दों को संभालकर बोलने की कला स्वंय में जागृत करें। शब्द मात्र शब्द ही नहीं होते मंत्र सम होते हैं। मधुर वाणी हमारे अंतस में सूक्ष्म शरीर के विशुद्धि चक्र से अंदर स्वयमेव जागृत होता है। जब हम सहज पद्धति से ध्यान करते हैं तब अन्य कई गुणों के साथ मधुर संवाद का गुण भी हमारे अंदर प्रस्थापित होता है। कुंडलिनी शक्ति का जागरण जो पहले असाध्य था अब सहज योग के माध्यम से सहज है। शुद्ध इच्छा के साथ हाथ फैलाकर बैठना है, बहुत सहजता से कुंडलिनी जागृत होती है, उपर की ओर उठती है और रीढ़ की हड्डी में स्थित हर चक्र को प्रकाशित करती जाती है। जब गले में स्थित विशुद्धि चक्र जागृत होता है हमें मधुर वाणी की सौगात मिलती है।
( 28 अप्रेल, 1991 ) के एक प्रवचन में श्री माताजी ने स्पष्ट करते हुए बताया है कि,
'आपको कैसे बात करनी चाहिए, आपको कब उठना चाहिए, कब सोना चाहिए, सब कुछ बदल जाएगा यदि आप वास्तव में इस तथ्य से अवगत हो जाते हैं कि आप सर्वशक्तिमान ईश्वर का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, जो विवेक का स्रोत है। विवेक में आप बहुत सी चीजें सीखेंगे। पहली है सहनशीलता - "यह सब ठीक है। हम इसे हल कर लेंगे। यह काम करेगा।" आप सीखेंगे कि वह प्रेम क्या है जो अलग है। आप सीखेंगे कि वह हास्य क्या है जो गुदगुदाता है, लेकिन चोट नहीं पहुँचाता है। आप यह भी सीखेंगे कि अपने व्याख्यानों में क्या कहना है, क्या सुनना है। और सभी चीजों में से, आप यह जानेंगे कि सर्वशक्तिमान ईश्वर के दर्शन को कैसे पूरा किया जाए।'
सहज योग जो सर्वथा निशुल्क है। अपने नज़दीकी सहजयोग ध्यान केंद्र की जानकारी टोल फ्री नंबर 1800 2700 800 से प्राप्त कर सकते हैं