देहबुद्धि से आत्मबुद्धि में स्थित होने की कला सिखाता है सहजयोग

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यदा संहरते चायं कूर्मोऽङ्गानीव सर्वशः।

इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥
'भगवद्गीता'

परमपूज्य श्री माताजी प्रणित सहजयोग अपने जीवन को सर्वांगसुंदर बनानेवाला एक अनुभुतिजन्य ध्यानाविष्कार है, जिसे विश्व का कोई भी व्यक्ति, जो अध्यात्मिकता की खोज कर रहा हो, अपने अराध्य को पाने के लिये धर्मग्रंथों का पठन कर रहा हो, मंदिरों में जाकर विविध प्रकार की पूजायें अर्पित कर रहा हो, उसे यह योग प्राप्त होता है । सहज योग एक ‘सत्ययोग’ है , इसलिये सभी सत्य के साधक जो ‘परम’ को पाना चाहते हैं, और उस परम को पाने की ललक में तीर्थयात्रायें कर रहे हैं, व्रतवैकल्यों का अनुसरण कर रहे हैं उन्हें अपनी अंतरात्मा से पूछना पड़ेगा कि, क्या मुझे अंतरंग परमात्मा के परमानंद की अनुभूति प्राप्त हुई ? अगर आपका उत्तर सकारात्मक है, तो उपरोक्त श्‍लोक मे वर्णित कूर्म जैसे आप अपने पंच ज्ञानेंद्रीयों को अंतरात्मा में स्थापित कर, बाहर की सभी नकारात्मकता से स्वयं को बचाकर, निरानंद का आनंद उठा पा रहे हैं? यदि नहीं तो सहजयोग आपकी राह देख रहा है । परमपूज्य श्री माताजी कहते हैं कि, आप आत्मा को पाये बगैर परमात्मा को प्राप्त नहीं कर सकते । और अपने हृदयस्थित आत्मा को पाने केे लिये आपको हृदय में विनम्रता का भाव धारण कर श्री आदी शक्ति से अपना आत्मसाक्षात्कार मॉंगना होगा, जब आपका योग घटित होगा तब आपके पिंड में स्थित कुंडलिनी माता उर्ध्वगामी होकर आपके सहस्त्रार का भेदन कर ,आपको शीतल चैतन्य लहरियों का स्नान करा देगी । और इस आत्मसाक्षात्कार प्राप्ति के बाद जिस प्रकार आप आईने में अपने मुखमंडल का अवलोकन करते हैं उसी प्रकार आप अपने आत्मारूपी आईने से अपने अंतरंग को मलीन करने वाले षड् रिपुओं  को देख सकेंगे  । जब आप आपने अंदर के दोषों को देख सकेंगे तो पूरी इमानदारी से उसे धोने की कोशिश करेंगे और इसके उपरांत आप एक बच्चे जैसे बन जायेंगें, बच्चों में अपने पराए का भाव नहीं होता, वे सभी को अपना समझते हैं, उसी प्रकार की अबोधिता एक आत्मसाक्षात्कार प्राप्त साधक में होनी चाहिये। श्री माताजी कहते हैं कि, भगवान श्रीकृष्ण हमारे विशुद्धि चक्र पर विराजमान हैं, नियमित ध्यान से जब हमारा विशुद्धि चक्र स्वच्छ होता है, तो वह चक्र हमे वाणी मधुरता, सामुहिकता, साक्षीभाव प्रदान करता है । श्रीकृष्ण हमें अनेक शक्तियों से आशीर्वादित करते हैं। ध्यान करने वाले समूह के सहस्त्रार से उत्सर्जित सामूहिक चैतन्य लहरीयों से अपने व्यक्तिगत, सामाजिक ही नहीं  वैश्विक प्रश्‍न भी हल किये जा सकते हैं । श्रीकृष्ण की इसी शक्ति के कारण हम सभी सत्य के साधकों तक अपनी वाणी, लेखनी और ध्यान के माध्यम से पहुँच सकते हैं और उन्हें उनके जीवन का महानतम उपहार अर्थात आत्मसाक्षात्कार प्रदान कर सकते हैं।
उपरोक्त वर्णित भगवद्गीतासे लिया गया जो श्‍लोक है उसका अर्थ यह है कि जिस प्रकार कूर्म (‘कासव’) जब उसके उपर कोई संकट आता है तो अपने अवयव कवच के अंदर खींच लेता है  और अपने आपको बचाता है , उसी प्रकार आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति नकारात्मकता से खुद को बचा सकता है। वह तत्क्षण देह बुद्धि से आत्मबुद्धि में स्थित हो जाता है, भगवान के साम्राज्य में चला जाता है, जहॉं कोई भी विनाशकारी शक्ति उसका बाल भी बांका नहीं कर सकती । यह श्रीकृष्ण की शक्ति का सबसे बड़ा आशीर्वाद है, जिसे प्रत्येक साधक प्राप्त कर सकता है। तो आइये सहजयोग सीखते हैं।
सहजयोग की जानकारी टोल फ्री 18002700800 से तथा यूट्यूब चैनल लर्निंग सहजयोगा से प्राप्त कर सकते हैं।

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