संत कबीर: एक विचार क्रांति के जनक

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(जयंती विशेष – 11 जून)


भारत की संत परंपरा में कबीर एक ऐसा नाम है, जिसने समाज, धर्म और अध्यात्म को एक नई दिशा दी। उनका जीवन किसी एक संप्रदाय या धर्म से बंधा नहीं था, बल्कि उन्होंने इंसानियत को ही सबसे बड़ा धर्म माना।
संत कबीर का जन्म 15वीं शताब्दी में हुआ था। कहा जाता है कि वे एक जुलाहा परिवार में पले-बढ़े, लेकिन विचारों में वे समस्त समाज के संत बन गए। उन्होंने अपने दोहों के माध्यम से सामाजिक कुरीतियों, अंधविश्वासों, बाह्याडंबर और जातिवाद पर तीखे प्रहार किए। कबीरदास ने ‘राम’ को सिर्फ ईश्वर नहीं, बल्कि एक प्रेम का प्रतीक माना — जो हिंदू-मुस्लिम दोनों के दिलों में बसता है।
उनके कुछ प्रसिद्ध दोहे आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं:
 "बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।"
 "पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।"
संत कबीर का संदेश स्पष्ट था:
"ईश्वर मंदिर-मस्जिद में नहीं, बल्कि इंसानियत और सच्चे प्रेम में है।"
आज जब समाज फिर से भेदभाव, हिंसा और द्वेष की ओर बढ़ रहा है, ऐसे समय में संत कबीर का मार्गदर्शन और उनकी वाणी हमें एकजुट होने की प्रेरणा देती है।
 आइए, इस संत कबीर जयंती पर हम संकल्प लें –
"धर्म से ऊपर इंसानियत को रखें, और प्रेम को जीवन का आधार बनाएं।"

 गावंडे परिवार, इंदौर
11 जून | संत कबीर जयंती विशेष

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