आत्मसाक्षात्कार जीवन में भय, निराशा, अवसाद व तनाव को समाप्त कर देता है
मन को बस में करना सबसे कठिन काम है। मन अच्छे से अच्छे भले मनुष्य को भी अमानुष बना देता है। मन से विवश हो इंसान कई बार गलत कदम उठा लेता है और ऐसा वह भयभीत होकर करता है। और सत्य यही है कि जहाँ ईश्वर पर विश्वास कम होता भय वहीं स्थान बनाता है। ईश्वर से डरकर की जाने वाली पूजा, उपवास और मंदिरों के दर्शन भी अविश्वास की श्रेणी में ही आता है।
इंसान जब भी किसी चीज में मात खाता है, आकस्मिक कोई व्यथा जीवन में आती है। वह भगवान के पास दौड़ता है। यह दौड़ आकस्मिक आये व्यवधान या अशांति से मुक्ति पाने को लेकर होती है, ईश्वर को पाने की आकांक्षा से नहीं होती। पर, यदि खोज ईश्वर को पाने की हो तो सारे व्यवधान के दूर होने में वक्त नहीं लगता।
एक भक्त को कभी किसी से डरना नहीं चाहिए क्योंकि उसके पीठ पर सदैव ईश्वर का हाथ रहता है, इस सच्चाई को मानने से ही शांतिपूर्वक जिया जा सकेगा। लेकिन, इस मन का क्या करें? मन को बस में करना है तो ईश्वर को मानने की जगह ईश्वर को धारण करना होगा। ईश्वर को धारण करना सर्वाधिक आसान है। दरअसल, ईश्वर हमारे अंदर है, इस बात को अनुभव करना है, जानना है। हम उन्हें धारण किये हुये हैं, इस यथार्थ को, उस अनुभूति को पाना है।
सहज योग के माध्यम से हम स्वयं को जानते हैं, मानते हैं, और बेहिसाब भय और नकारात्मकता से दूर हो जाते हैं। खुद को जानना आत्मसाक्षात्कार है - माध्यम है सहज योग। सारे देवी देवता चाहे वो किसी भी धर्म के हो, हमारे अंदर विराजमान हैं। हमें अपने चैतन्य रुप में अनुभूति देते हैं, अपने सद्गुणों से हमें आशीर्वादित करते हैं और हममें बदलाव आ जाता है। हम जान लेते हैं हम आत्मा मात्र हैं और स्वयं के गुरु भी।
परमपूज्य श्री माताजी के इन शब्दों से हम में और अधिक आत्मविश्वास आयेगा, जो उनके 7 मार्च 1981 के प्रवचन का अंश है,
"आपको बस खुद को स्वीकार करना होगा, बस इतना ही। सहज योग उतना ही सरल है।आप मेरे सामने एक सरल प्रश्न पूछें: "माँ, क्या मैं आत्मा हूँ, क्या मैं अपना शिक्षक हूँ?" आप अपने शिक्षक स्वयं हैं, लेकिन आपको पहले आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करना होगा। इससे पहले, माँ आपकी शिक्षक हैं, लेकिन एक बार जब आप अपना आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लेते हैं तो आप स्वयं अपने शिक्षक होते हैं... अब मैं जो करती हूँ वह आपको अपने हृदय में गर्भ धारण करना है और आपके सहस्रार के माध्यम से आपको बेदाग जन्म देना है... आप क्या कर सकते हैं? क्या आप ईश्वर के प्रेम के सागर की तुलना में प्रतिबद्ध हैं? मैं प्रेम के सागर की बात कर रही हूं। इसलिए यदि प्रकाश को आपमें आना है तो अपने प्रति दयालु बनें। खुद के लिए दयालु रहें। आप आत्मा के मंदिर हैं।"
सहज योग के बारे में जानने हेतु टोल फ्री नंबर 18002700800 या वेबसाइट www.sahajayoga.org.in पर संपर्क कर सकते हैं। सहज योग पूर्णतया निशुल्क है।