हृदय में भगवती शक्ति की स्थापना के बिना आत्मसाक्षात्कार संभव नहीं

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आत्मतत्व जाना नहीं, कोटिक किये जुज्ञान ll

तारे तिमिर न भागही, जब लगे उगे न भाल ll

कबीर दास जी आत्मसाक्षात्कारी संत थे। उपरोक्त वर्णित दोहे में वे कहते हैं। प्रकांड पंडित करोड़ों प्रकार के ज्ञान की बात करते हैं, परंतु उन्हें आत्मसाक्षात्कार न मिलने के कारण उन्हें ''स्वस्वरूप' का या हृदयी स्थित 'आत्माराम का वास्तविक ज्ञान नहीं होता। वे कहते हैं है, यदि हमने वेद, उपनिषद्, गीता, क़ुरान, बाईबल सर्व धर्मग्रंथो का अध्ययन कर लिया, सभी ग्रंथ कंठस्थ कर लेने पर भी यदि हमारे ह्रदय में देवी शक्ति स्थापित नहीं होती है तो आत्मसाक्षात्कार  प्राप्त नहीं होता है lऔर हमारा जीवन तब तक अंधकार में रहता है।
     जिस आत्मसाक्षात्कार रूपी सूरज की बात संत कबीर कर रहे हैं, इसे आज के कलियुग कहे जाने वाले विज्ञानयुग में पाया सकता है। परम पूज्य श्री माताजी निर्मलादेवी  द्वारा 1970 से आमजन को ऊपर वर्णित आत्मसाक्षात्कार सहज ही प्राप्त हो रहा है l
जिस सूक्ष्म शरीर, चक्र और नाड़ियों की बात 'सहजयोग' में की जाती है l इसका वर्णन तो हमें आर्युवेद, वेदों, उपनिषदों में मिल जायेगा, पंरतु पुस्तक पढ़कर आत्मसाक्षात्कार नहीं पाया जा सकता। आपको आपकी शुद्ध इच्छाशक्ती जागृत कर इसे परमेश्वरी माँ से माँगना होगा। आप जब इसे सच्चे ह्रदय से, संपूर्ण श्रद्धा और विनम्रता से इस आत्मसाक्षात्कार को मांगेंगे तो तत्क्षण' माँ भगवती की कृपा होगी, और एक अनिवर्चनीय आनंद की अनुभूति आप अपने अंतः करण में पाओगे। ये अनुभूति इतनी सुंदर होगी की पुनः उसे प्राप्त करने के लिये आपके मन मे लालसा होगी और फिर एक बार आप ध्यान की तरफ जाओगे। हर दिन आपके मन में ध्यान की ललक बनी रहेगी और आप को पता भी नही चलेगा की आप कितने बदल गये, कितने आनंदमय हो गये है l
अगर आप भी इसे सीखना चाहते है तो आज ही सीखे सहजयोग ध्यान, अधिक जानकारी के लिए 18002700800 पर कॉल कर सकते हैं।

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