शिवशक्ति की आराधना का विशेष माह श्रावण मास
शिव आत्मस्वरुप जगत पिता हैं, शक्ति कुंडलिनी स्वरूपा जगत माता
भारतीय दर्शन की अवधारणा और ईश्वर की अवधारणा है। यहां परमात्मा दो भागों में विभक्त है जिससे हम अर्धनारीश्वर की प्रतिमा के रूप में कई जगह सांकेतिक रूप से प्रतिष्ठित भी पाते हैं। समस्त ब्रह्मांड दो शक्तियों से निर्मित है एक पुरुष और दूसरी प्रकृति। एक शिव और दूसरी शक्ति परंतु हम इन्हें माता पिता के रूप में जानते हैं। वास्तव में हमारे शरीर के भीतर कुंडलिनी शक्ति का प्रतीक है जिसे हम आदिशक्ति भी कह सकते हैं और आत्मा शिव का तत्व है जो हमारे भीतर पितृत्व का पोषण करता है इस प्रकार शक्ति स्वरूपा कुंडलिनी हमारी आदि माँ है और शिव स्वरूप आत्मा हमारे आदि पिता है। इसी आस्था के चलते हम शिव शक्ति के उपासक होगे परंतु जैसे-जैसे हमारी आध्यात्मिकता पर भौतिकता हावी होती जा रही है हम शिव और शक्ति के वास्तविक स्वरूप को कहीं पीछे छोड़ आए हैं। जिसकी पूजा करना वास्तव में उसकी जागृति करने का प्रतीक था। आज की आस्था प्रपंच मात्र रह गई है इसके भीतर की आत्मा विलुप्त होने को है कारण अत्यंत साधारण है परंतु महत्वपूर्ण भी है हमारे देश के ऋषियों ने इतना तप कर अपना संपूर्ण जीवन न्योछावर कर के हमारे लिए ज्ञान का अथाह भंडार शास्त्रों के रूप में उपहार में दिया। जीवन और प्रकृति के एकरूपता के कितने सिद्धांत नियम उदाहरण वह हमारे लिए छोड़ गए। हमारे चिंतन में इनका स्थान कहां है? हमारे नितांत भौतिक सोच और परिवेश में धन कमाने और उसके भौतिक उपयोग के अतिरिक्त और किसी भी चिंतन शिक्षा का समाज में प्रभाव दिखाई नहीं पड़ता। सब के सब भेड़ चाल में ऐश्वर्य शाली जीवन जीने की कामना रखते हुए धनार्जन में व्यस्त हैं। इस नितांत भौतिक विकास में हमने आत्मिक विकास को कहीं पीछे छोड़ दिया है। हम भूल चुके हैं कि हम सबके भीतर आत्मा है और उस आत्मा का अपना व्यक्तित्व है। वही मन, बुद्धि और भावना के रूप में निराकार होते हुए भी सशक्त और जीवंत प्राण बनकर बह रही है। कुंडलिनी रूप शक्ति को तो हमने अपनी स्मृति से ही निकाल दिया है। समाज में यदि बालक जन्मदाता माता-पिता को भूल जाए तो हम उसे कोसते हैं, परंतु आज के बड़े बुजुर्ग भी तो अपने भीतर उस आद्याशक्ति और उस आत्मा को विस्मृत कर के जीवन को संपूर्ण समझ बैठे हैं। जब वे ही नहीं जानते तो आने वाली संतति को कौन बताए कि हमारे वास्तविक आदि पिता आदि माता कौन है और उनका हमारे जीवन में क्या महत्व है। शरीर और जीवन में पंचमहाभूतों,भूमि, जल, अग्नि, आकाश, वायु का क्या महत्व है और यह किस तरह हमारा जीवन संचालित करते हैं। पेड़ पौधों अन्य प्राणियों एवं सूर्य चंद्रमा की वार्षिक चर्या का हमारे जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है।
जिस तरह एक बीज वृक्ष बन कर अन्य बीज को जन्म देता है उसी तरह एक मानव अन्य मानव को जन्मता चला गया और माता स्थूल शरीर का पोषण करती चली गई परंतु वास्तव में यदि विपरीत प्रक्रिया में हम पीछे लौटेंगे तो मूल में एक ही माता अर्थात शक्ति और एक ही पिता अर्थात शिव तक पहुंचेंगे वहीं आदि पिता और आदि माता है। उनके अंश जो हमारे भीतर है आत्मा और कुंडलिनी के रूप में विराजे हैं। वे जागृति की प्रतीक्षा में है। वास्तव में शिव और शक्ति का पूजन अपने भीतर बैठी आत्मा और कुंडलिनी के जागरण का काल है । भौतिकता एवं स्थूल शरीर तो आत्मा और कुंडलिनी के उपकरण मात्र है।
ध्यान की सहज योग पद्धति के प्रणेता आदिशक्ति श्री माताजी निर्मला देवी द्वारा मानव जाति के उद्धार के लिए इसी कार्य को सरलता से संपादित करने की विधि अविष्कृत की गई है। इसे सीखना ही वास्तव में जीवन की पूर्णता है। इसे निशुल्क सीखने के लिए अपने नज़दीकी सहजयोग ध्यान केंद्र की जानकारी टोल फ्री नंबर 1800 2700 800 से प्राप्त कर सकते हैं।