श्रीकृष्ण जन्माष्टमी: धर्म, प्रेम और कर्तव्य का प्रतीक

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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी भारतीय संस्कृति और धर्म का एक ऐसा महत्वपूर्ण पर्व है, जो न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण का जन्म उत्सव मनाया जाता है, जिन्हें हिंदू धर्म में भगवान विष्णु का आठवां अवतार माना जाता है। उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं ने मानवता को धर्म, प्रेम, और कर्तव्य के पालन की अद्भुत सीख दी है।

धर्म का प्रतीक
श्रीकृष्ण ने अपने जीवन में धर्म का पालन और उसकी रक्षा के लिए कई कार्य किए। महाभारत के युद्ध के समय अर्जुन को दिए गए गीता के उपदेश, धर्म के प्रति उनकी निष्ठा और न्याय के मार्ग पर चलने की शिक्षा का अनुपम उदाहरण हैं। उनके उपदेश आज भी हमें जीवन में सत्य और धर्म के पथ पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं।

प्रेम और भक्ति
भगवान श्रीकृष्ण का जीवन प्रेम और भक्ति का उत्कृष्ट उदाहरण है। राधा-कृष्ण की प्रेम कहानी सिर्फ एक प्रेम कहानी नहीं है, बल्कि यह उस दिव्य प्रेम का प्रतीक है, जो आत्मा और परमात्मा के बीच होता है। उनके साथियों और गोपियों के साथ उनकी लीलाएं भक्ति और प्रेम की अद्भुत मिसाल हैं। जन्माष्टमी के अवसर पर, उनके प्रेम और भक्ति के इस रूप का स्मरण करते हुए भक्त उन्हें अपने आराध्य के रूप में पूजते हैं।

कर्तव्य का पालन
श्रीकृष्ण ने अपने जीवन के हर कदम पर कर्तव्य का पालन किया। चाहे वह एक राजा के रूप में, मित्र के रूप में, या एक गुरु के रूप में हो, उन्होंने हमेशा अपने कर्तव्यों का पालन किया और दूसरों को भी ऐसा करने की शिक्षा दी। उनका जीवन संदेश देता है कि व्यक्ति को हमेशा अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए धर्म के मार्ग पर चलना चाहिए।

उपसंहार
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व हमें श्रीकृष्ण के इन महान सिद्धांतों को अपने जीवन में अपनाने का संदेश देता है। इस दिन, हमें उनके उपदेशों को याद करते हुए धर्म, प्रेम और कर्तव्य के मार्ग पर चलने का संकल्प लेना चाहिए।

 

सादर,  
अनिल बाजपेई जी 
समाजसेवी
यह लेख श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के महत्व को समझाने के साथ-साथ जीवन में उनके उपदेशों को अपनाने के महत्व को भी बताता है।

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