सरकारी नौकरी में आरक्षण के लिए राज्य कर सकते हैं अनुसूचित जातियों का उप-वर्गीकरण : सुप्रीम कोर्ट का फैसला

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नई दिल्ली। शीर्ष अदालत ने आठ फरवरी को अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और अन्य की दलीलें सुनने के बाद अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था, जिसे आज सुना दिया गया। 
राज्य को सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने के लिए अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों का उप-वर्गीकरण करने का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की संविधान पीठ ने गुरुवार को बहुमत से यह फैसला दिया। संविधान पीठ ने 2004 में ईवी चिन्नैया मामले में दिए गए पांच जजों के उस फैसले को पलट दिया, जिसमें कहा गया था कि एससी/एसटी में उप-वर्गीकरण नहीं किया जा सकता है। 
सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी के भीतर उप-वर्गीकरण को बरकरार रखा। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने 6-1 के बहुमत से दिया गया फैसला सुना। जस्टिस बेला त्रिवेदी ने बाकी जजों से असहमति जताते हुए आदेश पारित किया। सीजेआई ने कहा कि 'हमने ईवी चिन्नैया मामले में दिए गए फैसले को खारिज कर दिया है। उप वर्गीकरण अनुच्छेद 14 का उल्लंघन नहीं करता है, क्योंकि उपवर्गों को सूची से बाहर नहीं रखा गया है।'
फैसला पढ़ते हुए सीजेआई ने कहा कि, 'वर्गों से अनुसूचित जातियों की पहचान करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले मानदंड से ही पता चलता है कि वर्गों के भीतर विविधता है।' उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 15, 16 में ऐसा कुछ भी नहीं है जो राज्य को किसी जाति को उप-वर्गीकृत करने से रोकता हो। हालांकि, शीर्ष अदालत ने फैसले में कहा है कि उप वर्गीकरण का आधार राज्यों द्वारा मात्रात्मक और प्रदर्शन योग्य आंकड़ों द्वारा उचित ठहराया जाना चाहिए, वह अपनी मर्जी से काम नहीं कर सकता। 
साभार अमर उजाला 

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