आवारा कुत्ते भी हमारे समाज का हिस्सा हैं

  • Share on :

✍️ लेख: गोपाल गावंडे

आज का इंसान तरक्की की दौड़ में तेजी से आगे बढ़ रहा है। बदलते समय के साथ स्वच्छता के प्रति जागरूकता भी बढ़ी है, लोग अब कचरा खुले में नहीं फेंकते – हर घर की चार पहिया गाड़ी से कचरा सीधे डस्टबिन या कचरा वाहन तक पहुँच रहा है। यह एक स्वागतयोग्य बदलाव है, लेकिन इसके कुछ अनदेखे परिणाम भी हैं।

 कभी हमारे मोहल्ले की गलियों में बिखरा खाना ही उन आवारा कुत्तों का सहारा होता था, जिनकी न तो कोई भाषा है, न ही कोई आवाज़ सुनी जाती है। आज वे भूखे घूमते हैं – उन्हें ना तो बचा हुआ खाना मिलता है, ना ही कोई देखने वाला।

 क्या हम इतने आत्मकेंद्रित हो गए हैं कि अपने आसपास के बेजुबानों की भूख और पीड़ा नहीं देख सकते?

 आइए, इस बदलते दौर में सिर्फ इंसान नहीं, इंसानियत को भी बचाएं।

मोहल्लों में एक कटोरी भोजन या रोटी
 कुछ बचे हुए चावल या दूध
 या हफ्ते में एक दिन थोड़ा अतिरिक्त खाना

ये छोटी-छोटी पहल उन कुत्तों के लिए जीवनदान बन सकती है।

???? जैसे पेड़-पौधे और पक्षी हमारे पर्यावरण के हिस्से हैं, वैसे ही ये आवारा पशु भी हमारे मोहल्लों, हमारी सभ्यता का हिस्सा हैं।
इनकी देखभाल हमारी नैतिक जिम्मेदारी भी है और संवेदनशीलता भी।

"वो बोल नहीं सकते, पर उनकी भूख, पीड़ा और विश्वास हमें सब कुछ कह जाता है।"
आइए, एक निवाला उनके नाम भी...

Latest News

Everyday news at your fingertips Try Ranjeet Times E-Paper