शुद्धि के बिना सिद्धि संभव नहीं है
शुद्धि के बिना सिद्धि संभव नहीं है। और, शुद्धि पाने का सहजतम मार्ग है सहज योग। सहज योग के अनुसार श्री गणेश का स्थान हमारे मूलाधार चक्र पर है। श्री गणेश सदैव बाल रुप में हैं और अबोधिता के गुण को मानव मात्र में स्थापित करते हैं। श्री गणेश के आशीर्वाद के बगैर हमारे अंदर शुद्धता व अबोधिता नहीं आ सकती क्योंकि जब यह गुण हमारे अंदर स्थापित होता है तभी सेक्रम बोन में तीन कुंडल में सुप्तावस्था में विराजमान कुंडलिनी मां जागृत होती है और उधर्वगति की ओर चलायमान होती है और मनुष्य के अंदर अबोधिता, पवित्रता और बुद्धिमता के गुण स्थापित होते हैं।
हमारे दैनिक जीवन में पवित्रता का विशेष महत्व है। साधना की पहली सीढ़ी ही पवित्रता है। जीवन में जितनी पवित्रता होती है, जीवन का उत्कर्ष भी उतना ही होता है। शुद्धि से तात्पर्य मात्र शरीर का नहीं है, बल्कि मन, प्राण और भाव-विचार के साथ-साथ हमारा अंत:करण भी निर्मल होना चाहिए। शुद्धता के गुण आते ही व्यक्ति धीरे-धीरे अज्ञान व अंधकार के आवरण को पार कर प्रकाशित स्थिति प्राप्त करता है। इस शुद्धि के फलस्वरूप मन की शांति, चित्त की स्थिरता और प्राण की एकाग्रता व हृदय की तन्मयता का प्रादुर्भाव स्वभावत: होने लगता है। आनंद का अवरोहण भी तभी संभव होता है। शुद्धि से आत्मा विभिन्न वासनाओं और आकर्षणों से मुक्त होती है। और...सिद्धि प्राप्ति से पहले की प्रारंभिक अवस्था शुद्धि ही है।
शुद्ध भावों वाला व्यक्ति ही परमात्मा को भी प्रिय होता है। उसके पूजन-अर्चन व प्रार्थना में शुचिता यानी पवित्रता का विशेष महत्व है। आचार-विचार के साथ-साथ जीवन के अन्य क्षेत्रों जैसे व्यापार में पैसे के लेन-देन और नौकरी आदि में ईमानदारी व कर्त्तव्य के प्रति निष्ठावान बने रहना भी पवित्रता की ही श्रेणी में आते हैं। व्यक्ति चाहे किसी भी क्षेत्र में कार्यरत हो, वह वहां रहते हुए ही पवित्रता का ध्यान रखने योग्य बन जाता है। पवित्रता को नित्य-प्रतिदिन की दिनचर्या में रखकर हम अपना बैद्धिक स्तर तो उत्तम बना ही सकते हैं, साथ ही, स्वयं सुखी रहते हुए अन्य लोगों को भी इस राह पर अग्रसर कर सकते हैं। पवित्रता जीवन का मूल आधार है। आज समाज में जो नैतिक पतन हो रहा है उसका एक खास कारण शुचिता की ओर ध्यान नहीं दिया जाना है। व्यक्ति जैसे ही पवित्रता की तरफ एक कदम बढ़ाता है, उसकी सोच में निखार आता है, उसकी भौतिक प्रगति के साथ-साथ आध्यात्मिक उन्नति भी होती है। अन्य लोग भी ऐसे व्यक्ति के प्रति श्रद्धा व आस्था का भाव रखने लगते हैं। जो भी महापुरुष या ऋषि-मुनि इस देश में हुए हैं, उन्होंने साधना के संदर्भ में पवित्रता को विशेष महत्व दिया है। वे ही हमारे प्राचीन व आधुनिक भारत के प्रेरणास्त्रोत बने। सच तो यह है कि पवित्रता का ध्यान रखे बगैर मानव जीवन का कल्याण संभव ही नहीं है।
श्री गणेश का पूजन मात्र एक कर्मकांड बनकर ना रह जाये इसीलिए सहज योग ध्यान पद्धति से जुड़कर उत्थान मार्ग पाने का प्रयास होना चाहिए। तो चलिए सहज योग से जुड़ते है। सहज योग पूर्णतया निशुल्क है। आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त करने हेतु अपने नज़दीकी सहजयोग ध्यान केंद्र की जानकारी टोल फ्री नंबर 1800 2700 800 से प्राप्त कर सकते हैं।