"मित्रता का बदलता स्वरूप – समय के साथ रिश्तों का नया आयाम"
संपादकीय:
मित्रता – यह शब्द सुनते ही चेहरे पर एक सहज मुस्कान आ जाती है। बचपन की गलियों से लेकर युवावस्था के सपनों तक, जीवन के हर मोड़ पर मित्र हमारे सहयात्री रहे हैं। लेकिन आज जब हम Friendship Day मना रहे हैं, तो यह सवाल मन में उठता है – क्या मित्रता का स्वरूप वही है जो पहले हुआ करता था, या अब यह बदल चुका है?
पुराने जमाने की मित्रता – दिल से दिल का रिश्ता
बीते समय में मित्रता का मतलब था – हर सुख-दुख में साथ खड़ा होना। गांव की चौपाल हो या शहर की गलियां, दोस्ती का बंधन बिना किसी स्वार्थ के गहराता था। तब न तो मोबाइल फोन थे, न सोशल मीडिया। फिर भी दोस्त एक-दूसरे से जुड़े रहते थे। एक चिट्ठी, एक मुलाकात या बस हाल-चाल पूछने के लिए घर पर आ जाना – यही रिश्तों को गाढ़ा बनाता था।
मित्रता तब समय की मांग नहीं थी, बल्कि जीवन की धड़कन थी। एक दोस्त के लिए दूसरे दोस्त का घर परिवार जैसा होता था। कई बार तो दोस्त ही मुश्किल वक्त में परिवार से बढ़कर साबित होते थे।
नए जमाने की मित्रता – डिजिटल कनेक्शन का युग
आज की मित्रता स्मार्टफोन और सोशल मीडिया पर ज्यादा निर्भर हो गई है। फेसबुक फ्रेंड्स, इंस्टाग्राम फॉलोअर्स और व्हाट्सएप ग्रुप – यही नए युग की पहचान बन गए हैं। सैकड़ों दोस्त ऑनलाइन जुड़े होते हैं, लेकिन जब जरूरत पड़ती है तो अक्सर हाथ गिनने लायक लोग ही साथ खड़े मिलते हैं।
फोन कॉल या वीडियो चैट से हम जुड़ तो जाते हैं, लेकिन यह जुड़ाव कई बार सतही रह जाता है। पुराने जमाने का अपनापन अब इमोजी और स्टिकर्स में सिमटकर रह गया है।
मित्रता के मायने – समय के साथ बदलती प्राथमिकताएं
मित्रता का मूल भाव कभी नहीं बदला – भरोसा, अपनापन और सहारा। फर्क बस इतना है कि अब रिश्तों को समय देना थोड़ा कठिन हो गया है। व्यस्त दिनचर्या और डिजिटल दुनिया की चकाचौंध ने हमें ‘फोन मित्र’ बना दिया है। लेकिन हमें यह याद रखना होगा कि दोस्ती केवल स्क्रीन पर चमकते नामों से नहीं बनती। इसके लिए दिल से जुड़ना और वक्त देना जरूरी है।
फोन मित्रता से आगे बढ़ें – दिल से रिश्ते निभाएं
हमारे पास तकनीक है, लेकिन दिलों में जगह बनाना अब भी जरूरी है। Friendship Day हमें यही याद दिलाता है कि एक फोन कॉल से ज्यादा जरूरी है एक सच्ची मुलाकात, एक संदेश से ज्यादा जरूरी है दोस्त की मुश्किल में साथ खड़ा होना।
दोस्ती वह रिश्ता है, जो हमें बिना शर्त अपनाता है। अगर हम पुराने जमाने की मित्रता की गहराई और नए जमाने की सुविधाओं को संतुलित कर पाएं, तो यह रिश्ता और भी खूबसूरत हो सकता है।
अंत में यही कहना उचित होगा – दोस्ती को केवल सोशल मीडिया की लाइक और कमेंट तक सीमित न रखें। पुराने जमाने की तरह समय निकालें, मुलाकात करें और दिल से रिश्ते निभाएं। तभी मित्रता का असली मायना पूरा होगा।
– आपका,
गोपल गावंडे
प्रधान संपादक, रणजीत टाइम्स