ध्यान की अवस्था का अनुभूत प्रयोग ही सहजयोग की विशेषता है
मात्र दर्शन भर कर लेना ईश्वर को पाने की संपूर्णता नहीं है। श्री राम को पाने का तात्पर्य है अपने भीतर उन्हें जगाना, अर्थात आत्मा की राम ज्योति जलाना, ईश्वर को अपने भीतर जगाने के लिए आत्मा को जागृत करना होगा, परंतु कैसे और क्यों यह सहज प्रश्न मन में उठता है।
भारतीय दर्शन में शास्त्र के कथनानुसार चलने का महत्व है और तदनुसार आत्मा ही है परमात्मा को पाने का माध्यम, अतः उसे जगाना होगा। इसे सरलता से निशुल्क घर बैठे अनुभव करने का उपाय है श्री माताजी निर्मला देवी प्रणित सहजयोग ध्यान पद्धति। यह सहज योग ध्यान पद्धति पतन्जलि योग पद्धति के आठ अंगों यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यान, धारणा तथा समाधि के सिद्धान्त का अनुमोदन करती है। इसमें आरंभ के चार अंग भौतिक शरीर के सुख एवं रोग क्लेश निवारण के लिये हैं, और शेष चार मन मस्तिष्क एवं आत्मिक सुख का साधन हैं। ध्यान की अवस्था का अनुभूत प्रयोग ही सहजयोग की विशेषता है। ध्यान की अनुभव सिद्धता का आनंद जो कुछ मिनिटों की प्रार्थना से ही लेना गूंगे के गुड़ के समान शब्दातीत है, जिन खोजा तिन पाइयाँ गहरे पानी पैठा।
सहज योग ध्यान के माध्यम से आत्मा के जागरण के द्वारा आनंद का अमृत जीवन को सींचता है, रोग, शोक, भय, आशंका, पीड़ा सबका नाश हो कर आत्मिक सुख प्राप्त होता है। मनुष्य का कल्याण ध्यान के द्वारा बड़ी सहजता से होता है इसी कारण इसे सहजयोग कहा जाता है।
संसार की अनेक सभ्यताएं प्रकाश की आराधना श्रद्धा और समर्पण से करती रही हैं क्योंकि प्रकाश ही परम शक्ति का प्रतीक है जो जीवन को नश्वरता से अमरत्व की ओर ले जाने का प्रेरक आनंद है।
सहजयोग की ध्यान पद्धति बड़ी सूक्ष्मता से इस आनंद को हमारे भीतर जगा देती है और हमारे आत्म विश्वास को दृढ़ करती है।
आनंद की सर्जना करने वाली माँ हमारे भीतर हैं, और वह ध्यान द्वारा जागृत की जा सकती हैं।भारतीय संस्कृति मातृ शक्ति की उपासक रही है मातृ देवो भव का आदर्श हमारा आधार है। वैदिक काल से ले कर वर्तमान युग तक हम नदी, धरती, गाय, और देश को भी माँ के नाम से पूजते हैं। अथर्व वेद मे उल्लेख है माता भूमिः पुत्रोहम पृथिव्या अर्थात भूमि मेरी माता है और मैं उसका पुत्र । इस भावना के पार्श्व में गूढ़ ज्ञान विलोपित है। वास्तव में शिव से पृथक शक्ति ही प्रकृति है पाँच तत्वों में यही मातृ शक्ति सूक्ष्म रूप मे जीव का सर्जन करती है। और जीव के जन्म लेने के पश्चात उसकी इच्छा शक्ति (विल पॉवर) के रुप उसके आनंद का सृजन करने को आतुर रहती है उसकी इसी आतुरता को स्वयं के बारे मे जानने की जिज्ञासा को कोऽहम्?कहा गया।
ध्यान इसी कः अहम्? की जिज्ञासा का उत्तर हैl
परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी प्रणीत सहज योग की ध्यान पद्धति अत्यंत सरलता से इस प्रश्न के उत्तर को अनुभव कराती है। निश्चय ही माँ सृष्टि की आनंद दायिनी सर्जक शक्ति है वही हमारे आत्म बल को बलवत्ता प्रदान करती है इसी लिए हम भारतीय परंपरा से ही शक्ति के उपासक हैं।
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें www.sahajayoga.org.in एवं टोल फ्री नंबर 18002700800 पर कॉल करें