''परेशान है आम जनता''
✍️ संपादकीय कविता —
— रणजीत टाइम्स संपादक गोपाल गावंडे जी द्वारा
शहरों में अब जाम लगा है, ये संकट है रोज़ का नाम,
ट्रांसपोर्ट के नाम पे सरकार वसूल रही है भारी दाम।
बोझ बढ़ा है आम जन पर, पर समाधान नहीं है पास,
हर दिन कोई नई मुसीबत, और सरकार बस देती त्रास।
मानसून की बूँदें गिरते ही, गलियों में बहने लगे नाले,
ना सफाई, ना प्लानिंग—सिर्फ़ आरोपों के जाले।
सड़कें बनती, फिर टूटती, फिर खुदाई का हो काम,
हर नुक्कड़ पर है खड़ी कोई "खोदा-खादी" की शाम।
वोट मांगते समय नेता जी करते हैं बड़े-बड़े वादे,
लेकिन मुसीबत में कभी नहीं दिखते साथ खड़े।
हर कदम पर है दुर्घटना—कभी ट्रेन उतरे पटरी से,
कभी फ्लाइट क्रैश हो जाए, या बिल्डिंग ढह जाए छतरी से।
कभी पत्नी बन जाए जल्लाद और पिकनिक पर हो वार,
क्या यही है सुरक्षा? क्या यही है सरकार?
सौर ऊर्जा की चोरी खुलेआम हो रही है आजकल,
लेकिन आम जन फँसा है शिकायतों के दलदल।
अब क्या करे ये जनता, जिसका सब्र टूटने को है तैयार?
सवाल पूछना गुनाह, जवाब देना सरकार को भी है भार।
???? अब समय है जवाब का—not जुमलों का, ना दिखावे का,
आम जन की तकलीफ़ को समझे—देश के नव निर्माण का ये पहला इम्तहान है।
– आपका गोपाल गावंडे
मुख्य संपादक, रणजीत टाइम्स