परमात्मा की  करुणा व प्रेम का अनुभव ही सहजयोग का लक्ष्य है

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प्राचीन युग में जब लोग अपनी चेतना में ऊँचा उठना चाहते थे तो वे अत्यन्त सम्मानजनक और अच्छे होते थे। तब सभी कुछ ठीक था। संतों, पैगम्बरों और अवतरणों द्वारा कही गई सभी बातों को वे मानते थे तथा उन्हें करने का प्रयत्न किया करते थे।
      भारत में सोलहवीं शताब्दि में बहुत से महान सन्त हुए जो कवि थे। बारहवीं शताब्दि में भी हमारे यहाँ बहुत से महान आध्यात्मिक लेखक हुए। इन सभी संतों का मुख्य विषय यह था कि उत्थान के लिए हमें अवश्य अपना शुद्धिकरण करना चाहिए। हमें स्वयं को पवित्र करना चाहिए तो महानतम उपलब्धि जो हमें प्राप्त करनी है वह है हमारा पुनर्जन्म, हमारा आत्मसाक्षात्कार, हमारा मोक्ष। मानव जीवन का यही स्वीकृत लक्ष्य था।
       लोग ये नहीं समझते कि ये बात क्यों कही गई थी और ये कार्य क्यों किया जाना चाहिए। मनुष्य को चाहिए कि सर्वशक्तिमान परमात्मा को समझे तथा उसकी करुणा, उसकी महानता और उसकी दिव्यता का अच्छा प्रतिविम्ब बनने का प्रयत्न करे। परमात्मा से योग प्राप्त किए बिना कही गई प्रार्थना बिना जुड़े टेलीफोन जैसी होती है। प्रार्थना आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति द्वारा कुण्डलिनी जागृति करके, अपने चक्रों को शुद्ध करने का एक मार्ग है। आधुनिक समय में भिन्न प्रकार के मनुष्यों ने पृथ्वी पर जन्म लिया है। बिना धर्म के मूलतत्वों को समझे, आँखें बन्द करके धर्मादेशों को मानने वाले लोग धर्मान्ध कहलाते हैं। उन्हें स्वयं को समझना होगा कि वे क्या हैं और धर्म के माध्यम से उन्हें क्या बनना है? उन्हें ये देखना होगा कि अब तक उन्होंने कैसा समाज प्राप्त किया है। किसी चीज़ का अन्धाधुन्ध अनुसरण करने का प्रयत्न यदि वे करते हैं तो वे अपने लिए भी समस्या हैं और पूरे विश्व के लिए भी उन्होंने सभी अवतरणों तथा सभी महान धर्मों को लज्जित किया है।
उदाहरण के रूप में चित्त पर यदि आपने नियन्त्रण प्राप्त करना है, अपने मस्तिष्क को यदि आपने समझना है, अपने अन्दर यदि आपको चिन्तन करना है तो अहंविहीन व्यक्तित्व को माध्यम के रूप में उपयोग करना होगा। अहंविहीन व्यक्तित्व ही व्यक्ति को स्वयं को नियन्त्रित करने एवं शुद्ध करने की शक्ति दे सकता है।
मानव के लिए मर्यादाओं के रूप में धर्म के दस तत्व हैं जो दस धर्मादेशों की तरह से हैं। इन धर्मादेशों का जब पतन हो जाता है तो मानव अत्यन्त भ्रमित या आक्रमक हो उठता है। सहजयोग द्वारा परमेश्वरी प्रेम का शाश्वतधर्म अन्तस में आलोकित हो उठता है और साधक स्वतः सच्चे शब्दों में धार्मिक, धर्मपरायण, नैतिक, शान्त, करुणामय और सशक्त ज्योतिर्मय व्यक्ति बन जाता है। ( श्री माताजी, 'परा आधुनिक युग' से साभार )
 सहजयोग का अनुभव प्राप्त करने हेतु आप 
टोल फ्री नं – 1800 2700 800 से जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। सहजयोग पूर्णतया निःशुल्क है।

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