श्री लक्ष्मी नारायण का स्थान नाभि चक्र हमें धर्मपरायण बनाता है
सूक्ष्म शरीर का तृतीय चक्र नाभि चक्र कहलाता है। नाभि के पीछे इसकी दस पंखुड़ियां हैं। यह चक्र किसी भी चीज़ को अपने अन्दर बनाये रखने की शक्ति हमें देता है। शारीरिक स्तर पर यह सूर्य चक्र में सहायक है। नाभि चक्र पर श्री लक्ष्मी-नारायण का स्थान है। श्री लक्ष्मी-नारायण जी का स्थान जो है हमें धर्म के प्रति रुचि देता है। उसी के कारण हम धर्मपरायण होते हैं, उसीसे हम धर्म धारण करते हैं।
आपका नाभि चक्र यह सुझाता है कि आप अभी तक भी भौतिकता में फँसे हुए हैं। अगर आप चालबाज़ी करते हैं या करने की कोशिश करते हैं तो आपका नाभि चक्र क्षतिग्रस्त होता है और आप अपनी चेतना खो बैठते हैं। बाईं नाभि को यदि उत्तेजित कर दिया जाये जैसे हर समय दौड़ते रहने से, उछल-कूद से, उत्तेजना से, तो उत्तेजित बाईं नाभि के कारण रक्त कैन्सर तक हो सकता है। जो औरतें पति से दुर्व्यवहार करती हैं, उसकी उपेक्षा करती हैं, उन्हें भयानक आत्माघात (Siriosis), मस्तिष्क घात, पक्षाघात, शरीर का पूर्ण डिहाइड्रेशन हो सकता है। बाईं नाभि बहुत महत्वपूर्ण है।
नाभि चक्र में यदि खराबी हो तो सभी प्रकार के पेट के रोग, हो सकते हैं। जब इस चक्र का संतुलन आता है तब इसे खराब करने वाली बुरी आदतें जैसे मद्यपान, नशा सेवन छूट जाता है और तब वह सत्य साधना की ओर निकल पड़ता है, धन तथा सांसारिक वस्तुओं की अधिक चिन्ता नहीं करता।
नाभि चक्र में हमारे अन्दर देवी लक्ष्मी जी बसती हैं। जब हमारी कुण्डलिनी नाभि पर आ जाती है तो हमारे अन्दर वो जाग्रति आ जाती है जिससे लक्ष्मी जी का स्वरूप हमारे अन्दर प्रकट हो जाता है। श्री माताजी ने इसकी व्याख्या करते हुए कहा है कि
"आपके लक्ष्मी तत्व की जाग्रति के बगैर आपके अन्दर लक्ष्मी नहीं आयेंगी, हाँ पैसा आ जाएगा, .... केवल लक्ष्मी तत्व की जाग्रति से ही आप ऐसे लक्ष्मी पति हो सकते हैं जो समाधान में, इतने संतुलन में खड़ी हैं, वो कमल पर ही खड़ी रहती हैं - इतनी सादगी से, इतनी मर्यादा से वो रहती हैं। यही गुण आप में जाग्रत हो जाते हैं।"
जब नाभि चक्र को पार लेते हैं तो पैसा अधिक महत्वपूर्ण नहीं रह जाता संतोष प्राप्त हो जाता है। दानत्व का भाव जागृत हो जाता है आदमी जो होता है वो अपने लिये कुछ भी संग्रह नहीं करता, देने में ही उसको आनन्द आता है, लेने में नहीं।
श्री लक्ष्मी जी और सभी देवियाँ महिलायें है, इनकी विशेषता क्या है? अपना स्वभाव एवं गुणों का आशीर्वाद लोगों को देना।
ये गुण हैं गांभीर्य, तेजस्विता, उदारता, दान, निष्ठा, सेवा, गरिमा, अतिथि सत्कार, एक शान पर झूठा घमंड नहीं।
सहजयोग में नियमित ध्यान के माध्यम से नाभि चक्र के संतुलन द्वारा इसके गुणों को आत्मसात कर सौभाग्य लक्ष्मी की प्राप्ति सहज ही में कर सकते हैं। सहज योग निशुल्क भी है और आसान भी सहजयोग ध्यान केंद्र की जानकारी टोल फ्री नंबर 1800 2700 800 अथवा यूट्यूब चैनल लर्निंग सहजयोगा से प्राप्त कर सकते हैं ।

