योग का वास्तविक अर्थ है हमारी आंतरिक शक्ति का परमात्मा की शक्ति से एकरूप होना

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योग के संबंध में कहा जा सकता है कि योग स्थूलता से सूक्ष्मता की ओर जाना अर्थात बाह्य से अंतर्मुख होना है। योग प्रक्रिया में यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार के पांच बहिरंग साधन हैं और धारणा, ध्यान, समाधि अंतरंग साधन हैं। 
        योग का वास्तविक अर्थ है हमारी आंतरिक शक्ति का परमात्मा की प्रेम की शक्ति से एकरूप होना। समग्र याने इन्टीग्रेटेड हुए बिना ध्यान की हर पद्धति अधूरी है। स्वयं का साक्षात्कार किए बिना परम शक्ति को अनुभव नहीं किया जा सकता। सहजयोग में यह कुंडलिनी जागरण से आसान हो जाता है। आत्मा की जागृति के लिए ध्यान में स्थित होना ही एकमात्र साधन है।
            ध्यान  प्रक्रिया एक व्यक्तिगत आंतरिक प्रक्रिया होती है। जहां आप नितांत अकेले होते हैं। जब स्थूल गौण होने लगता है व सूक्ष्म की जागृति होती है। निर्विचारिता का प्रादुर्भाव होता है व हम भूत और भविष्य को छोड़कर वर्तमान में स्थित हो जाते हैं। इस स्थिति को श्री माताजी ने अत्यंत ही सुंदर शब्दों में व्यक्त किया है कि,
           "सर्वप्रथम ध्यान है दूसरे धारणा फिर समाधि। साधना जब आपमें जागृत होती है तो आप अपना चित्त अपने इष्ट पर डालते हैं - यह ध्यान है। आपने निरंतर अपना चित्त अपने इष्ट देवता पर रखना है, तब आपमें वह स्थिति विकसित होती है जो धारणा कहलाती है। जिसमें आप के चित्त का एकीकरण इष्ट देवता के साथ हो जाता है। यह स्थिति परिपक्व होने के पश्चात तीसरी अवस्था समाधि का उदय होता है। ( मुंबई, 19/1/ 1984  )
नियमित ध्यान धारणा द्वारा योगीजन समाधि की विभिन्न अवस्थाओं में स्थित हो परम से एकाकारिता को प्राप्त करते हैं। सवेरे उठकर के साधक को चाहिए कि वो ध्यान करें, ये आदत लगाने की बात है, सवेरे के टाइम में एक तरह से ग्रहण करने की क्षमता ज्यादा होती है मनुष्य में।..."
     नियमित ध्यान धारणा द्वारा जब पांचों तत्वों का जय हो जाता है तब फिर योगी के लिए ना रोग है ना जरा है ना दुख है क्योंकि उसने वह स्थिति पा ली है जो योग से प्रकट हुई है। योग का पहला फल यही होता है शरीर हल्का हो जाता है, आरोग्य  रहता है, विषयों की लालसा मिट जाती है, कांति बढ़ जाती है, स्वर मधुर हो जाता है, गंध शुद्ध हो जाता है तथा उत्सर्जन के कार्यों में  क्षीणता आती है। इसके पश्चात् आत्मा के शुद्ध स्वरूप का साक्षात् होता है। व्यक्ति आत्मतत्व से साक्षात् करके सब शोक  को पार करता हुआ परम से एकाकार हो जाता है। उसकी कृपा में कृतार्थ हो जाता है।  सहजयोग सृष्टि के आनंद को प्राप्त करने का योग है। प्रतिपल इस आनंद में स्थित रहने के लिए श्री माताजी के समक्ष कुंडलिनी जागरण द्वारा आत्म साक्षात्कार प्राप्त कर आप इस राह के राही बन सकते हैं स्वयं को एक अवसर अवश्य प्रदान करें परमात्मा के साम्राज्य का अधिकारी बनने का।
कुंडलिनी जागरण द्वारा आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने हेतु टोल फ्री नम्बर  18002700800 पर संपर्क करें।

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