आध्यात्म का वैज्ञानिक स्वरूप है चक्रों नाड़ियों व कुंडलिनी शक्ति का ज्ञान

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सहज योग प्रणेता परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी के अनुसार विश्व में मनुष्य से श्रेष्ठ कोई और प्राणी नहीं। क्योंकि उसी में परम चेतना को उभारने वाली विद्या कार्यरत हो सकती है और इसी विद्या को अध्यात्म कहते हैं। वस्तुत: अध्यात्म का लक्ष्य है- मनुष्य के अंदर छिपी शक्तियों और सत्प्रवृत्तियों को मनोवैज्ञानिक पद्धति से इतना आगे बढ़ाना कि  व्यक्ति को ईश्वर की अनुभूति हो सके और व्यक्ति के जीवन में देवत्व छलकने लगे। 
    दूसरी तरफ विज्ञान का लक्ष्य है प्रकृति तथा पदार्थ में छिपी शक्तियों की जानकारी प्राप्त करना, जिससे मनुष्य के जीवन में कोई भौतिक कष्ट न रहे और वह सुख-सुविधा युक्त जीवन जी सके।
     सापेक्षता सिद्धांत के जन्मदाता अल्बर्ट आइंसटीन के अनुसार, 'इस संसार में ज्ञान और विश्वास दो वस्तुएं हैं। ज्ञान को विज्ञान व विश्वास को धर्म कहेंगे। मैं ईश्वर को मानता हूं, क्योंकि इस सृष्टि के अद्भुत रहस्यों में ईश्वरीय शक्ति ही दिखाई देती है। अब विज्ञान भी इस बात का समर्थन कर रहा है कि संपूर्ण सृष्टि का नियमन एक अदृश्य चेतना कर रही है।'
      चिकित्सा की शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्र जानते हैं कि यह शरीर विभिन्न अंगो व हड्डियों से मिलकर बना है।   अनुसंधान व शिक्षण द्वारा विस्तार से स्थूल शरीर के बारे में शिक्षा प्राप्त की जाती है।   ऐसे ही आत्मसाक्षात्कारी योगी जानता है कि स्थूल शरीर के अंदर एक सूक्ष्म शरीर है और हमारी नाड़ियों और चक्रों से मिलकर यह सूक्ष्म शरीर बनता है।  और यह भी कि इन्हीं नाड़ियों और चक्रों में देवी देवताओं का वास है।   यही सूक्ष्म शरीर आत्मा की व्यवस्था का तंत्र है जिससे परमात्मा प्रतिबिंबित होते हैं और यही सृष्टि का सर्वोच्च आविर्भूत सत्य है।  सहज योग इसी सूक्ष्म शरीर के माध्यम से ईश्वर से एकाकारिता स्थापित करने की प्रक्रिया से हमें अवगत कराता है और ध्यान साधना के माध्यम से हमें परमात्मा का अंग प्रत्यंग बनने का सुख प्रदान करता है। 
   सहज योग पूर्णतया निशुल्क है।  अपने आत्म साक्षात्कार को प्राप्त करने हेतु अपने नज़दीकी सहजयोग ध्यान केंद्र की जानकारी टोल फ्री नंबर 1800 2700 800 से प्राप्त कर सकते हैं या वेबसाइट sahajayoga.org.in पर देख सकते हैं।

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