त्रिभुवन की निर्मिती का राज आत्मतत्व प्राप्त करना!
संत हेति प्रभि त्रिभुवण धारे ।
आतमु चीनै सु ततु बीचारे ।
संचु रिदै सचु प्रेम निवास ।
प्रणवति नानक हम ता के दास॥
गुरूनानक
सहजयोग सरल है, सुंदर है, जिस किसी साधक को सहज योग ने अलंकृत किया उसका जीवन धन्य हो गया । उसने अपने जीवन का लक्ष्य पा लिया, परंतु यह इतना सुंदर सहजयोग लाखो में ‘ एक ’को मिलता है । क्यूं ? इस प्रश्न का उत्तर है , श्रध्दा का अभाव, विश्वास का अभाव ! जब तक हमारे हृदय में परमात्मा के प्रति, श्रीमाताजी के प्रति पूर्ण श्रध्दा, पूर्ण प्रेम उमडता नही, तब तक हमे आत्म साक्षात्कार प्राप्त नहीं होता ! यह आत्म साक्षात्कार पाने की पूर्ण योजना, पूर्व तयारी प्रभू परमेश्वर ने हमारे सुक्ष्म शरीर में तैयार की है । जिस प्रकार तिल में तेल, दुध दही में तुप और काष्ठ याने की लकडी मे अग्नि छुपा हुआ है, उसी प्रकार अपने हृदयरूपी संवित कमल में परमात्मा का अंश, आत्मा छुपा हुआ है, और सहजयोग में हम बडी सहजता से इसे जान सकते है, चैतन्य लहरीयों के माध्यम से अनुभूत कर सकते है ।
परमपूज्य श्री माताजी कहते है, अपनी आत्मा को स्थापित या प्रकाशित करने की महान शक्ती आपके अंदर है, वो है श्रध्दा । उस श्रध्दा को हृदय से जानना चाहीए और उसकी मस्ती में रहना चाहीये, उसके आनंद में आता चाहीये । ये जो श्रध्दा की आल्हाददायींनी शक्ती है , उस अल्हाद को लेते रहना चाहिये । उस खुमारी में रहना चाहीये । जब तक मनुष्य उस आल्हाद में पुरी तरह से घुल नही जायेगा उसके सारे कुछ भी प्रश्न है ,समस्याये है वो बनी रहेगी । मानव चित्त भ्रान्तियो से परिपूर्ण है , भ्रांतियॉं दूर होने पर चित्त ज्योर्तिमय एवं आशीर्वादित होता है । कुण्डलिनी जागृती व्दारा आपकी बहुत सी भ्रांतियॉं दूर कर दी गई है ।
नानक साहब अपनी ‘गुरूवाणी’ में कहते है, संतो के लिये प्रभू पिता परमेश्वर ने त्रिभुवनो को धारण किया है । संत वही है, जिसने आत्मा को जाना । आत्मा सत्य है , आत्मतत्व परम प्रेमास्पद है, और जिस किसी ने उस आत्मतत्व को पा लिया वो भी परम प्रेमास्पद बन जाता है । तो आईये परम प्रेमास्पद आत्मा का वरण कर ,अपने जीवन की सारी समस्याओ का समाधान प्राप्त करते है, सहजयोग सिखते है ।

