तृतीय नवरात्रि मां चंद्रघंटा व मणिपुर चक्र की आराधना का दिवस
मणिपुर ( नाभि ) चक्र - श्री लक्ष्मी नारायण की शक्ति व धर्म की स्थापना का केंद्र : श्री माताजी
सनातन संस्कृति में शक्ति की आराधना को विशेष महत्व दिया गया है। परन्तु शक्ति की आराधना के लिए सर्वप्रथम शक्ति का ज्ञान होना आवश्यक है। सबसे बड़ा सनातन ज्ञान यह है कि मानव सहित संपूर्ण ब्रह्मांड ब्रह्म शक्ति से निर्मित है और अंत में उसी में विलीन हो जाना है। यही ब्रह्म शक्ति मनुष्य में कुंडलिनी शक्ति के रूप में स्थित होती है जिसे अनेक सूक्ष्म चक्रों द्वारा सुरक्षित किया जाता है। और बिना इन चक्रों का मेकेनिज़्म जाने हम इस चक्रव्यूह का भेदन किए हम शक्ति की जागृति नहीं कर सकते। नवरात्रि इन्हीं चक्रों की शक्तियों को जाग्रत व कार्यान्वित कर कुंडलिनी शक्ति के उत्थान का अवसर होता है। नवरात्रि के प्रत्येक दिन हम शक्ति के विशेष रूप की आराधना करते हैं और ये विशेष चक्र से संबंधित होती है।
मां दुर्गा की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघण्टा है। नवरात्रि उपासना में तीसरे दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन व आराधना की जाती है। इनके मस्तक में घण्टे के आकार का अर्धचन्द्र है। इसी कारण इन देवी का नाम चंद्रघण्टा पड़ा। इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है। इनका वाहन सिंह है। इनका ध्यान मणिपुर चक्र पर किया जाता है जिससे सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है।
मणिपुर चक्र जिसे नाभि चक्र भी कहा जाता है, श्री लक्ष्मी-नारायण का स्थान होता है। यह हमें धर्म परायण बनाते हैं।
सहज योग संस्थापिका श्री माताजी निर्मला देवी जी ने इस चक्र की विशेषताओं की व्याख्या इस प्रकार की है कि,
लक्ष्मीजी के चरण कमल पर हैं और अपने दो हाथों में उन्होंने कमल पकड़े हुए हैं । कमल सौन्दर्य का प्रतीक हैं और उनका गुलाबी रंग प्रेम का प्रतीक । ये प्रतीक हैं कि जिस व्यक्ति के पास लक्ष्मी हो , धन हो , उसे कमल की तरह से उदार होना चाहिए । कमल छोटे से भँवरे को भी अपने अन्दर सोने का स्थान देता है । अपनी पंखुड़ियों से ढककर उसे सुख पहुँचाता है और उसकी रक्षा करता है
नाभि चक्र में तीन भाग होते हैं: बाएँ, दाएँ और केंद्र। बाईं ओर गृह लक्ष्मी (पत्नी) है, दाईं ओर श्री राज लक्ष्मी या गज लक्ष्मी है, और केंद्र में श्री लक्ष्मी हैं, जिनकी उत्क्रांती श्री महालक्ष्मी के रूप में होती है दिन-प्रतिदिन के जीवन में, जब हम श्री लक्ष्मी के गुणों से युक्त होते हैं, तो हम पाते हैं कि हमें जीवन में अनायास ही प्रकृति की सहायता प्राप्त होने लगती है। हमारे पास अपनी उदारता का आनंद लेने के लिए पर्याप्त समृद्धि होती है। नाभि चक्र का एक अन्य पहलू हमारे जीवन में धर्म या नैतिक आचरण का है। यहां श्री विष्णु हमारे धर्म व आध्यात्मिक विकास की रक्षा और पोषण करते हैं।
अपने मणिपुर चक्र पर महालक्ष्मी तत्व की जागृति हेतु कुंडलिनी जागरण द्वारा आत्म साक्षात्कार प्राप्त कर सहजयोग ध्यान धारणा एक अत्यंत ही सहज मार्ग है। इस नवरात्रि स्वयं को सहजयोग का अतुलनीय अनुभव प्राप्त करने का अवसर आवश्य प्रदान करें।
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