निर्विचार ध्यान तनाव, रोग, शोक आदि का सहज उपचार है

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वदन्तु शास्त्राणि यजन्तु देवान्
कुर्वन्तु कर्माणि भजन्तु देवताः ।
आत्मैक्यबोधेन बिना विमुक्तिः न सिध्यति ब्रह्मशतान्तरेऽपि ॥ 
-श्री आदिशंकराचार्य 
प. पूज्य श्रीमाताजी प्रणित सहजयोग आत्मबोध या आत्मतत्व की बात करता है। जब हम आत्म तत्व की बात करते हैं तो हमें लगेगा कि ये बड़ा जटिल विषय है। आत्मा-परमात्मा, ये बातें हमें रोजमर्रा के जीवन में उपयोग में आनेवाली नहीं लगती। परंतु जीवन में हम सभी कुछ न कुछ खोज रहे हैं, और हमारी ये खोज तभी पूर्ण होगी जब हम हमारे आत्मतत्व को जान जाएंगे। सहजयोग में जब साधक को  आत्मसाक्षात्कार प्राप्त होता है तब उसे यह अनुभूति उसके हृदय में और उसके सूक्ष्म शरीर पर होती है। परंतु आज के विज्ञान के युग में हम भ्रमित हैं तथा माया और भ्रम का प्रभाव इतना अधिक है कि कई बार मानव सत्य को समझ नहीं पाता। बाहर का आडंबर, कर्मकांड, छद्म, कट्टरता, अंधविश्वास को ही धर्म या योग समझ लेता है। 
     इसलिये श्री आदिशंकराचार्य ने अपने शिष्यों को ग्रंथ 'विवेकचूडामणि में  वैज्ञानिक दृष्टीकोण से सत्य अनुभव करने को कहा। उपरोक्त वर्णित श्लोक में वे कहते हैं, भले ही कोई शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त करे, सभी देवताओं का पूजन करे, सभी प्रकारके कर्मकांड करे, देवताओं का भजन करे परंतु जब तक जीव ध्यान के माध्यम से आत्मा में पूर्ण रूप से स्थापित नहीं होता तब तक मुक्ति नहीं मिल सकती। भले ही करोड़ो वर्ष क्यों न बीत जायें। अर्थात मोक्ष के लिये आत्मा में स्थापित होना जरूरी है। 
    प.पू. श्रीमाताजी कहते हैं कि,  आत्मसाक्षात्कार पाये बिना आत्मा में स्थित नहीं हो सकते। और जब आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त होता है तो आप चित्त को अंतर्मुखी बनाकर अपने हृदय में या सहस्त्रार चक्र यानि कि ब्रह्मरंध्र पर स्थिर करने की कला सीख सकते हैं। और आप भूत व भविष्य के विचारों से मुक्त होकर वर्तमान में स्थित हो जाते हैं। निर्विचार ध्यान का अनुभव आपको अंदर से शक्तिवान और आनंदमयी बना देता है। समस्त तनाव, परेशानियां, रोग, शोक आदि से आप मुक्त हो जाते हैं। इस अद्भुत व अकल्पनीय अनुभव को प्राप्त करने हेतु सहजयोग ध्यान को एक अवसर अवश्य प्रदान करें।
नज़दीकी सहजयोग ध्यान केंद्र की जानकारी टोल फ्री नंबर 1800 2700 800 से प्राप्त कर सकते हैं या वेबसाइट sahajayoga.org.in पर देख सकते हैं।

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