खगोलशास्त्रियों का तीर्थ बनेगा उज्जैन

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काल गणना के लिए डोंगला में 'जंतर मंतर' तैयार
यहां सूरज की छाया रुक जाती है... आज सीएम करेंगे वेधशाला का उद्घाटन
उज्जैन : उत्सव सोनी
महाकाल की नगरी उज्जैन अब खगोल शास्त्रियों का तीर्थ भी बनने जा रही है। उज्जैन के पास डोंगला गांव में देश की छठी वेधशाला तैयार है। इस स्थान पर हर साल 21 जून को दोपहर 12:28 बजे सूर्य की किरणें इतनी लंबवत होती हैं कि छाया तक नहीं बनती। खगोलशास्त्र में इसे शून्य छाया बिंदु कहते हैं।
इसी खगोलीय विशेषता के कारण डोंगला को भारत के नए टाइम रेफरेंस प्वाइंट के रूप में विकसित किया जा रहा है।
इस समय की गणना के लिए यहां देशभर से खगोलशास्त्री, पंचांगकार, वैज्ञानिक और छात्रों का मेला लगता है। वैज्ञानिक विधि से समय और काल निर्धारण किया जाता है, जो पंचांग में उपयोग होता है।
अब यहां 50 बीघा में वराहमिहिर खगोलीय वेधशाला तैयार है। जयपुर, दिल्ली, बनारस, उज्जैन और मथुरा के बाद डोंगला को देश का छठा 'जंतर-मंतर' कहा जा रहा है। शनिवार 21 जून को सीएम डॉ. मोहन यादव इसका लोकार्पण करेंगे।
प्रदेश की सबसे लंबी टेलीस्कोप भी
{इसके अलावा यहां 20 इंच व्यास की प्लेनवेव दूरबीन लगी है, जो सौर मंडल से लेकर सुदूर तारों तक की निगरानी कर सकती है। यह प्रदेश की सबसे लंबी दूरबीन है।
शोध, शिक्षा और ज्योतिष का संगम
यहां 200 सीट वाला आधुनिक ऑडिटोरियम है। साथ ही, चिंतक मोरोपंत पिंगले की प्रेरणा से स्थापित सरस्वती विद्या मंदिर में प्राथमिक कक्षाओं से ही खगोल विज्ञान पढ़ाया जा रहा है।
1972 से शुरू हुई खोज, अब पूरी दुनिया की नजर साल 1972 में पद्मश्री डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर ने पहले पाया कि उज्जैन से गुजरने वाली कर्क रेखा और पारंपरिक शून्य देशांतर रेखा अब डोंगला की ओर खिसक चुकी हैं। इस पर उन्होंने बेंगलुरु की एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी से उपग्रह चित्र मंगवाए और 1985 में डोंगला को कर्क रेखा के नए बिंदु के रूप में चिह्नित किया।
डॉ. वाकणकर के शिष्यों और खगोल वैज्ञानिकों ने इस शोध को आगे बढ़ाया। वर्ष 1990 में चिंतक मोरोपंत पिंगले और बाद में सुरेश सोनी के प्रयासों से डोंगला को एक वैज्ञानिक केंद्र के रूप में विकसित करने की दिशा तय हुई।
यहां जल्द ही कर्कराजेश्वर मंदिर की स्थापना होगी। इसके अलावा एक हेलीपैड भी बनाया जा रहा है। नक्षत्र वाटिका का विकास जैसी योजनाएं पूरी होंगी, जिससे डोंगला न केवल खगोल विज्ञान का बल्कि आध्यात्मिक और सांस्कृतिक ध्रुव भी बन सके।
डोंगला अब राष्ट्रीय पंचांग निर्माण का मानक केंद्र है। यहां से हर साल ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति, तिथियां और त्योहार तय किए जाते हैं। महाराष्ट्र में प्रचलित 'कालनिर्णय' कैलेंडर और अन्य पंचांग भी उज्जैन मेरिडियन को आधार मानते हैं।
 यहां 5 यंत्रों से होगा ग्रहों की दिशा सौर समय का अध्ययन 
यह वेधशाला, प्लेनवेव दूरबीन व प्राचीन यंत्रों का अद्भुत समन्वय है।
शंकु यंत्र- सूर्य की छाया से समय और अक्षांश तय करने वाला छड़ीनुमा यंत्र।
भित्ति यंत्र- उत्तर-दक्षिण दिशा में दीवार जैसा यंत्र, जिससे सूर्य-चंद्रमा की ऊंचाई मापी जाती है
सम्राट यंत्र- विशाल त्रिकोणाकार घड़ी, जो सौर समय बताती है
नाड़ी वलय यंत्र- ग्रहों की दिशा व गति को मापने वाला पारंपरिक यंत्र।
भास्कर यंत्र - गोलाकार यंत्र जो पृथ्वी के झुकाव और ध्रुव तारे की स्थिति दर्शाता है।

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