चैतन्य की गहनता, अनुभूति व उपयोग को समझें सहजयोग से - नवरात्रि को सार्थक बनाएं

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 हमारे अंदर स्थित सुक्ष्म शरीर का ज्ञान और अपने अंतर्शक्ति का आभास हमें तब होगा जब हम इस शक्ति को समझने की शुद्ध और दृढ़ इच्छाशक्ति रखेंगे।  जिस प्रकार जिस समय सृष्टि का निर्माण हुआ धरती के अंदर निर्माण की शक्ति निहित थी। वैसे ही, मनुष्य के सृष्टि के पूर्व उनके अंदर भी एक शक्ति स्थापित कर दी गई। ‌ यह हमारे अंदर की कुंडलिनी शक्ति है, यही आदिशक्ति‌ का प्रतिबिंब है, इसे आदि कुंडलिनी कह सकते हैं।  आदिशक्ति और आदि कुंडलिनी में अंतर यह है कि आदि कुंडलिनी कुंडलिनी शक्ति का प्रतिनिधित्व करती है और आदिशक्ति परम चैतन्य का।  कुंडलिनी शक्ति हमारे रीढ़ की हड्डी के नीचे स्थित सेक्रम बोन अर्थात् त्रिकोणाकार अस्थि में स्थित है, जो मानव‌ में प्रतिबिंबित होता है और इसके जागृत होते ही आदिशक्ति का परम चैतन्य हमारी हथेली से प्रवाहित होने लगता है।   
आदि कुंडलिनी के नीचे श्री गणेश को बिठाया गया है जो अपनी माँ आदि कुंडलिनी के संरक्षक हैं। हमारी त्रिकोणाकार अस्थि के नीचे मूलाधार चक्र है और यही श्री गणेश का स्थान है।  जब तक मूलाधार चक्र स्वच्छ नहीं होगा, श्री गणेश का गुण अबोधिता  और सत् सत् विवेक बुद्धि मानव के अंदर प्रस्थापित नहीं होगा तब तक माँ कुंडलिनी जागृत नहीं होगी। आदिशक्ति के परम चैतन्य से एकाकारिता पाने के लिए हमारे अंदर की कुंडलिनी शक्ति की जागृति होनी चाहिए।   नवरात्र के शुभ अवसर पर साधक  इस ओर प्रयास कर सकते हैं।  सहज योग के सेंटर्स‌ हर शहर और लगभग हर गांव में हैं, जहाँ जाकर सहज योग से जुडा़ जा सकता है।  इसके अलावा ऑनलाइन भी सहज योग का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। सहज योगी साधक आत्मसाक्षात्कारी कहलाते हैं क्योंकि उन्होंने ईश्वरीय शक्ति का आभास अपने हथेली और सिर के तालु भाग पर महसूस कर लिया है। 
सहज योग में आया साधक यह महसूस करने लगता है कि वो वास्तव में एक अच्छा इंसान है।    चैतन्य लहरियों के कार्यरत होते ही हम सभी इच्छाओं और आकांक्षाओं से उपर उठकर एक आनंद लोक के सदस्य बन जाते हैं।   हमें इस संसार के भीड़ के अंग मात्र बनकर नहीं रह जाना है अपितु अपने विवेक को जागृत कर ईश्वरीय साम्राज्य में प्रवेश करना है। 
चैतन्य लहरियाॅं  हमारा विकास करती है, हमारे अंदर सद्गुण स्थापित करती है, अंतर्दर्शन से हमारे अंदर की समस्त नकारात्मकता नष्ट हो जाती है, चैतन्य लहरियों से हम अपने और अन्यों के चक्रों को समझने लगते हैं।  चैतन्य लहरियाॅं हमें ज्योतिर्मय करती हैं और यह अनुभूति हमारी दैवीय शक्ति से एकाकारिता को पूर्णत्व प्रदान करती है।  हम अपनी चैतन्य लहरियों से दूसरों का दुख दूर कर सकते हैं। क्योंकि यहाँ हमारी शुद्ध इच्छा कार्य करती है। ईश्वर से जुड़े होने के कारण हमारी प्रार्थनायें  सहज स्वीकार कर ली जाती है। 
हमारे जीवन में, हमारी भाव भंगिमाओं में, हमारे स्वाभाव में और दूसरों के प्रति हमारे व्यवहार में सुंदर बदलाव आने लगता है।  आज समाज में हर कोई पूर्ण संतुष्टि, शांति और धैर्य से जीवन जीना चाहता है और आत्मसाक्षात्कार‌ पाने की शुद्ध इच्छा शक्ति से हम इस स्थिति को पा सकते हैं। 
नवरात्र की सार्थकता को जीवन में उतारने और ईश्वर के साम्राज्य में प्रवेश पाने हेतू सहज योग से जुड़ें और इसके लिए आप अपने नज़दीकी सहजयोग ध्यान केंद्र की जानकारी टोल फ्री नंबर 1800 2700 800 से प्राप्त कर सकते हैं।  सहज योग पूर्णतया निशुल्क है।

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