मानव जीवन के उद्देश्य को समझें सहजयोग ध्यान पद्धति से
26 जनवरी 1979, बोरीवली, मुंबई में अपने एक प्रवचन में श्री माताजी ने कहा था,
"शायद आप नहीं जानते हैं कि परमात्मा ने आपको क्यों बनाया और कभी आप सोचते भी नहीं है परमात्मा ने इतनी मेहनत करके आपको इतना सुन्दर क्यों बनाया, आपको मनुष्य क्यों बनाया परमात्मा ने, इस पर भी आप गौर नहीं करते हैं क्योंकि आपके पास समय ही नहीं है कि यह सोचें कि हम क्या हैं, हम किसलिए संसार में आये हैं, हमारा क्या कार्य है। अगर मैं कहूँ आपसे कि अपने अंदर की ओर झांकिए, अपने को देखिये तो आप अपने को नहीं देखते हैं, आप कहेंगे कि माँ ये किस तरह से होता है, किस तरह से अंदर जायें, हम तो आपकी बात सुन रहे हैं, आप बाहर हैं, आपको देख रहे हैं लेकिन हमसे आप कहें कि अंदर की ओर जायें, ये बड़ा मुश्किल कार्य है।"
"अंदर की ओर जायें, ये बड़ा मुश्किल कार्य है।", यह बात हर साधक के मन में आ सकती है। सचमुच यह मुश्किल कार्य ही है लेकिन असंभव नहीं। माँ कभी अपने बच्चों से असंभव कार्य करने को नहीं कहेगी। बल्कि उस असंभव कार्य को संभव कैसे करना है यह सिखायेगी। सहज योग यही ध्यान पद्धति है।
परमपूज्य श्री माताजी प्रणित सहज योग से साधकों ने यह समझा है कि हम ईश्वर की सर्वोत्तम सृष्टि हैं और ईश्वर ने हमें अपने स्वरूप में ही निर्मित किया है। ईश्वर यह चाहते हैं कि हम ईश्वर की इस सृष्टि को, इस ब्रम्हांड को सुंदरतम बनायें, आपस में स्नेह और सद्भावना रखें। अपने प्रतिबिंब मानवमात्र से ईश्वर की यही अपेक्षा है कि हम उनके प्रतिनिधि की तरह इस संसार में जीये। अपने किसी और सृष्टि से ईश्वर को यह अपेक्षा नहीं है।
ईश्वर का प्रतिबिंब मानव अपने को तभी समझ सकता है जब वो स्वयं को देख सके, अपने आत्मज्ञान को प्राप्त कर सके। सहज योग में आत्मसाक्षात्कार के उपरांत जब कुंडलिनी शक्ति जागृत होती है तब हमारा सहस्त्रार खुलता है, हम इस विराट में फैले चैतन्य को महसूस करने लगते हैं। यह एक अद्भुत, सुंदर और अविश्वसनीय सत्य है। जिस प्रकार सागर में यदि कटोरी भर रंग डाला जाये तो रंग का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा। उसी प्रकार हमारी आत्मा भी सागर की तरह है जिसमें दिव्य प्रकाश है। जब यह प्रकाश रुपी सागर हमारे मस्तिष्क में गिरता है तब मस्तिष्क का अपना स्वरूप आध्यात्मिक हो जाता है और हम ईश्वरीय साम्राज्य में प्रवेश करने की पात्रता पा लेते हैं। जो लोग ध्यान धारणा करते हैं, समर्पण करते हैं, गहनता में उतरते हैं वे वृक्ष की जड़ों की तरह गहनता में प्रवेश पाते हैं और ऐसे व्यक्ति का सभी अनुसरण करते हैं।
जब हम इस आत्म स्थिति को पा लेते हैं तब हमें पूजा या किसी भी विधि विधान या कर्मकांड की आवश्यकता नहीं रह जाती है। हम पूर्ण निरानंद की स्थिति में शांति प्राप्त करने लगते हैं। 'मैं' से उपर उठ जाते हैं। अपने नज़दीकी सहजयोग ध्यान केंद्र की जानकारी टोल फ्री नंबर 1800 2700 800 या वेबसाइट www.sahajayoga.org.in से प्राप्त कर सकते हैं। सहज योग पूर्णतया निशुल्क है।