हाथों से प्रवाहित होने वाले चैतन्य व स्पर्श के विज्ञान को समझें सहजयोग से
जब हम किसी का स्पर्श करते हैं तब उंगलियों के पोर ही सर्वप्रथम स्पर्श का आभास पाते हैं। कई बार किसी का स्पर्श करते ही हमें नकारात्मकता का बोध होता है और हम तत्काल हाथ पीछे खींच लेते है। जब हम सहज योग से जुड़ते हैं और आत्मसाक्षात्कार पाते हैं तब विद्युत के प्रवाह सा, पर शीतल चैतन्य हमारे संपूर्ण शरीर में प्रवाहित होने लगता है और उंगलियों के अग्रभाग पर यह सर्वाधिक केंद्रित होता है।
हथेली सदैव हमारी संवेदनाओं की वाहक रही है। जब भी हम किसी को तसल्ली देना चाहते हैं, आश्वस्त करना चाहते हैं तब हमारी हथेली स्वयंमेव उनके कंधे या हाथों का स्पर्श कर हमारी संवेदना उनतक पहुंचाने का प्रयास करती है। धन्वंतरि जी जिन्होंने 'चिकित्सातत्त्वविज्ञानतन्त्र' की रचना की थी, उन्हें संपूर्ण विश्व जानता और मानता है, वे संक्रमण रोग से बाधित व्यक्ति में अपने उंगलियों के पोर से विद्युत सम अपनी आंतरिक ऊर्जा प्रवाहित कर उन्हें रोग मुक्त कर दिया करते थे।
कालांतर में स्पर्श चिकित्सा भी विकसित हुई थी। कई गुरु अपने स्पर्श से मरीजों को निरोगी बना देते थे। आज कलियुग में सामान्य मानव भी बड़ी सहजता से उंगलियों के पोर पर चैतन्य की अनुभूति पा लेता है और अपने स्वयं के अंदर या किसी और व्यक्ति के अंदर समस्या कहां है इसे चैतन्य के माध्यम से जान पाता है। इस ईश्वरीय ऊर्जा की अनुभूति पाने के लिए हमें अपनी ही आत्मा से जुड़ना होगा। हमारी आत्मा हमारे अंदर है, पर हम सदैव उससे जुड़े हुये नहीं होते हैं। अपनी आत्मा से जुड़ने के लिए हमारे अंदर शुद्ध इच्छा होनी चाहिए और अपनी बुद्धि और अहंकार से परे होते हुये हमें परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी प्रणीत सहज योग के माध्यम से आत्मसाक्षात्कार लेकर रोज कुछ देर ध्यानरत रहने का अभ्यास करना होगा।
हमारे अंदर स्थित सूक्ष्म शरीर की नाड़ियाँ हमारी हथेली व उंगलियों से जुड़ी हुई हैं। जब सहज योग की पद्धति से हम ध्यान करते हैं तब चैतन्य प्रवाह शीतल व निर्बाध होता है। पर यदि हमारे अंदर कहीं अस्वस्थता हो या कोई बाधा हो तो जिस जगह समस्या है वहां स्थित चक्र से हमारी संबंधित उंगली में गर्म चैतन्य या चुभन का आभास होता है ऐसे में हम उस चक्र पर कुछ देर ज्यादा ध्यान कर अपनी समस्या से निजात पाते हैं।
दूसरों को भी यदि आवश्यकता हो तो सहज योगी अपनी हथेली के माध्यम से उन्हें चैतन्य देते हैं ताकि उनके अंदर यदि कहीं कुछ नकारात्मक हो तो उसे दूर कर सके। तब भी संबंधित व्यक्ति के अंतर्स्थिति का आभास उंगलियों के पोर पर हो जाता है। इस घोर कलियुग में इस ईश्वरीय अनुभूति को समझना अद्भुत संयोग ही होगा। हर व्यक्ति को इसे पाने का अधिकार है।
पेड़ पौधे, पशु पक्षी व अपने आसपास के पर्यावरण को भी चैतन्य से सुरक्षित कर सकते हैं। तो चलिए इस अद्भुत ज्ञान को जिसे आध्यात्म का विज्ञान भी कहते हैं, उससे जुड़ें और अपनी अंतरआत्मा से जुड़कर हम अपनी हथेलियों पर अपने संपूर्ण शरीर की स्थिति को समझें और अपने चिकित्सक स्वयं बनें।
सहज योग निशुल्क भी है और आसान भी सहजयोग ध्यान केंद्र की जानकारी हेतु टोल फ्री नंबर 1800 2700 800 वेबसाइट www.sahajayoga.org.in