प्रदीप मिश्रा के धाम मे भगदड़ जिम्मेदार कौन

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दीपक वाड़ेकर

 श्रद्धा में जान जाती है, तो ये कौन-सा पुण्य होता है? कुबेरश्वर धाम में फिर भगदड़, फिर मौत: क्या ‘श्रद्धा’ अब भीड़ तंत्र का शिकार बनती रहेगी? श्रद्धा हो या व्यवस्था, जब तक संतुलन न हो, हादसे ही होंगे।

सीहोर के कुबेरेश्वर धाम में आज एक बार फिर वही हुआ जो दो साल पहले भी हुआ था — भगदड़, चीखें, और दो जिंदगियों की दर्दनाक मौत। ये सिर्फ एक दुर्घटना नहीं थी, ये एक दोहराई गई लापरवाही थी। कांवड़ यात्रा में शामिल श्रद्धालु भारी संख्या में कुबेरेश्वर धाम पहुंचे थे, लेकिन न भीड़ का प्रबंधन था, न प्राथमिक चिकित्सा की सुविधा, और न ही कोई आपात योजना। और अंततः दो लोग जान गंवा बैठे — सिर्फ इसलिए कि श्रद्धा के नाम पर सिस्टम हर बार आंख मूंद लेता है।

???? क्या ये पहली बार हुआ है?
नहीं! दो साल पहले भी इसी जगह, रुद्राक्ष वितरण आयोजन में भगदड़ मच गई थी। जिसमें तीन साल के बच्चे और दो महिलाओं की मौत हुई वहीं कई लोगों की जान पर बन आई थी। तब कहा गया था — "इस बार सीख लेंगे, अगली बार पूरी तैयारी होगी।" लेकिन आज 2025 में भी वही दर्द, वही मौतें, वही लापरवाह प्रबंधन ।

???? जवाबदेही किसकी है?
- क्या सिर्फ पुलिस और प्रशासन की?
- क्या आयोजन करने वाले प्रदीप मिश्रा की कोई जिम्मेदारी नहीं?
- जब हजारों की भीड़ आने की सूचना पहले से थी, तो क्यों पर्याप्त व्यवस्थाएं नहीं की गईं?

कुबेरश्वर धाम का आयोजन कोई पहला या छोटा आयोजन नहीं है, यह एक सुनियोजित, प्रचारित और ब्रांडेड धार्मिक इवेंट बन चुका है। लेकिन अगर उस आयोजन में लोगों की जान बचाने के लिए बुनियादी इंतजाम न हों, तो क्या हम इसे आध्यात्मिकता कहें या भीड़ तंत्र का अंधा व्यापार?

???? श्रद्धा बनाम अंधश्रद्धा?
श्रद्धा तब तक शक्ति है जब तक उसमें विवेक हो।
जब भक्त सिर्फ लाइन में लगने के लिए जान दांव पर लगाता है और आयोजक सिर्फ भीड़ की संख्या गिनने में व्यस्त हो — तब धर्म एक आयोजन नहीं, एक तमाशा बन जाता है।

⚖️ अब जरूरी है कुछ कड़े सवाल और बदलाव:
- हर बड़े धार्मिक आयोजन की मंजूरी से पहले सुरक्षा ऑडिट अनिवार्य हो।

- आयोजक — चाहे वो कोई भी बाबा, कथावाचक या संस्था हो — सीधी जवाबदेही में आएं।

- भीड़ नियंत्रण के लिए आधुनिक तकनीक (RFID bands, heat maps, real-time monitoring) लागू की जाए।

- श्रद्धालुओं को भीड़ के प्रति सचेत किया जाए, और भीड़ से ज्यादा ‘ध्यान’ पर जोर दिया जाए।

????️ श्रद्धांजलि या शर्म?
आज जिन दो लोगों ने अपनी जान गंवाई, वो सिर्फ श्रद्धालु नहीं थे — वो किसी के बेटे, पिता, भाई या बहन थे। क्या अब हर साल उन्हें श्रद्धांजलि देकर भूल जाना ही हमारी व्यवस्था है? या फिर हम अब बदलाव की शुरुआत करेंगे?

कुबेरश्वर धाम की घटना हमें याद दिलाती है — भीड़ को मत भुलाओ, उसे समझो, संभालो, और सबसे जरूरी — उसके पीछे की इंसानियत मत खोओ।

???? धर्म अगर लोगों की जान न बचा सके, तो कम से कम उसे जान न लेने दे।

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